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भगवती सूत्र - श. ११ उ. ११ महाबल चरित्र
खलु देवाणुप्पिए ! सुविणसत्यंसि बायालीसं सुविणा तीसं महासुविणा बावतारं सव्वंसुविणा दिट्टा । तत्थ णं देवाणुप्पिए ! तित्थयरमायरो वा चक्कवट्टिमायरो वा तं चैव जाव अण्णयरं एगं महासुविणं पासित्ताणं पडिवुज्झति । इमे य णं तुमे देवाणुप्पिए ! एगे महासुविणे दिट्ठे, तं ओराले णं तुमे देवी! सुविणे दिडे, जाव रज्जवई राया भविस्सर, अणगारे वा भावियप्या, तं ओराले णं तुमे देवी! सुविणे दिट्ठे, जाव दिट्ठे त्ति कट्टु पभावई देवि ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं जाव दोच्चं पि तच्च पि अणुबूहइ ।
कठिन शब्दार्थ - जीवियारिहं-- जीविका के योग्य, पीइवार्ण-- प्रीतिदान ।
भावार्थ - २४ - स्वप्नपाठकों से उपरोक्त स्वप्न फल सुनकर एवं अवधारण करके बलराजा हर्षित हुआ, संतुष्ट हुआ और हाथ जोड़ कर यावत् स्वप्नपाठकों से इस प्रकार बोला - "हे देवांनुप्रियों ! जैसा आपने स्वप्नफल बताया वह उसी प्रकार है- "इस प्रकार कह कर स्वप्न का अर्थ भली प्रकार से स्वीकार किया । इसके बाद स्वप्नपाठकों को विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम, पुष्प, वस्त्र, गन्ध, माला और अलंकारों से सत्कृत किया, सम्मानित किया और जीविका के योग्य बहुत प्रीतिदान दिया और उन्हें जाने की आज्ञा दी। इसके बाद अपने सिंहासन से उठकर बलराजा प्रभावती रानी के पास आया और स्वप्नपाठकों से सुना हुआ स्वप्न का अर्थ कह सुनाया । यावत् "हे देवानुप्रिये ! तुमने एक उदार महास्वप्न देखा है, जिससे तुम्हारे एक पुत्र उत्पन्न होगा । वह राज्याधिपति होगा अथवा भावितात्मा अनगार होगा। हे देवानुप्रिये ! तुमने एक उदार यावत् मांगलिक स्वप्न देखा है ।" इस प्रकार इष्ट, कान्त, प्रिय यावत् मधुरवाणी से दो तीन बार कहकर प्रभावती देवी की प्रशंसा की ।
१९४०
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