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भगवती सूत्र - श. ११ . ११ महाबल चरित्र
कठिन शब्दार्थ - हरियालिया कय मंगलमुद्धाणा - हरी दूब का मंगल करके ।
भावार्थ - २३ - 'हे देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र जाओ और ऐसे स्वप्नपाठकों को बुलाओ - जो अष्टांग महानिमित्त के सूत्र एवं अर्थ के ज्ञाता हो और विविध शास्त्रों में कुशल हों ।' राजाज्ञा को स्वीकार कर कौटुम्बिक पुरुष शीघ्र, चपलता युक्त, वेगपूर्वक एवं तीव्र गति से हस्तिनापुर नगर के मध्य होकर स्वप्न- पाठकों के घर पहुँचे और उन्हें राजाज्ञा सुनाई। स्वप्न- पाठक प्रसन्न हुए । उन्होंने स्नान करके शरीर को अलंकृत किया । वे मस्तक पर सर्वप और हरी ब से मंगल करके अपने-अपने घर से निकले और राज्य प्रसाद के द्वार पर पहुँचे । वे सभी स्वप्न- पाठक एकत्रित होकर बाहर की उपस्थान शाला में बलराजा के पास आये । उन्होंने हाथ जोड़कर जय-विजय शब्दों से बलराजा को बधाया । बल राजा वन्दित, पूजित, सत्कृत और सम्मानित किये हुए वे स्वप्न पाठक, पहले से रखे हुए उन भद्रासनों पर बैठे । बल राजा ने प्रभावती देवी को बुलाकर यवनिका के भीतर बिठाया। तत्पश्चात् हाथों में पुष्प और फल लेकर बलराजा ने अतिशय विनयपूर्वक उन स्वप्न - पाठकों से इस प्रकार कहा - " हे देवानुप्रियो ! आज प्रभावती देवी ने तथारूप के वासगृह में शयन करते हुए सिंह का स्वप्न देखा । हे देवानुप्रियो ! इस उदार स्वप्न का क्या फल होगा ?"
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तणं ते सुविणलक्खणपाढगा बलरस रण्णो अंतियं एयमहं सोच्चा णिसम्म हट्ट तु तं सुविणं ओगिव्हंति, ओगिण्हित्ता ईहं अणुष्पविसंति, अणुष्पविसित्ता तस्स सुविणस्स अत्थोग्गहणं करेंति, तस्स अण्णमण्णेणं सधि संचालेंति, संचालित्ता तस्स सुविणस्स लट्टा गहिया पुच्छियट्टा विणिच्छियट्टा अभिगयट्टा बलस्स रण्णो पुरओ सुविणसत्थाई उच्चारेमाणा उच्चारेमाणा एवं वयासी - ' एवं
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