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भगवती नव-श. ११ उ. ११ महावल चरित्र
रजलाभो देवाणुप्पिए ! एवं खलु तुम देवाणुप्पिए ! णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अट्ठमाणराइंदियाणं वीइवकंताणं अम्हं कुलकेडे, कुलदीवं, कुलपव्वयं, कुलवडेंसयं, कुलतिलगं, कुलकित्तिकर, कुल. णंदिकर, कुलजसकर, कुलाधार, कुलपायवं, कुलविवद्धणकर, सुकु. मालपाणि-पायं, अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरं, जाव ससिसोमाकार, कंतं, पियदंसणं, सुरूवं, देवकुमारसमप्पभं दारगं पयाहिसि ।
कठिन शब्दार्थ-कुलवडेंसयं-कुल में शिखर के समान, कुलपायवं-कुल में पादप (वृक्ष) के समान, दारगं-बालक, ससिसोमाकारं-चन्द्र के समान सौम्य आकार बाला ।
भावार्थ-१९-'हे देवी ! तुमने उदार स्वप्न देखा है । हे देवी ! तुमने कल्याण कारक स्वप्न देखा है। यावत् हे देवी ! तुमने शोभायुक्त स्वप्न देखा है । हे देवी ! तुमने आरोग्य, तुष्टि, दीर्घायुष्य, कल्याण और मंगलकारक स्वप्न देखा है । हे देवानुप्रिये ! तुम्हें अर्थलाभ, भोगलाभ, पुत्रलाभ और राज्य-लाभ होगा। हे देवानुप्रिये ! नव मास और साढ़े सात दिन बीतने के बाद तुम अपने कुल में ध्वज समान, दीपक समान, पर्वत समान, शिखर समान, तिलक समान तथा कुल की कीर्ति करनेवाले, कुल को आनन्द देने वाले, कुल का यश करने वाले, कुल के लिये आधारभूत, कुल में वृक्ष समान, कुल की वृद्धि करने वाले, सुकुमाल हाथ-पाँववाले, अंग हीनता रहित, सम्पूर्ण पञ्चेन्द्रिय युक्त शरीर वाले यावत् चन्द्र के समान सौम्य आकृति वाले, कान्त, प्रियदर्शन, सुरूप एवं देवकुमार के समान कान्तिवाले पुत्र को तुम जन्म दोगी। .
२०-से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णायपरिणय. मेत्ते जोवणगमणुप्पत्ते सूरे वीरे विक्कंते वित्थिण्ण-विउलबल-वाहणे
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