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________________ १९१६ भगवती सूत्र-श. ११ उ.. ११ सुदर्शन सेठ के काल विषयक प्रश्नोत्तर भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव णमंसित्ता एवं वयासी कठिन शब्दार्थ-परिवसइ-रहता था, अड्ढे-आढ्य-धनाढ्य, अपरिभूएकिसी से नहीं दबने वाला (दृढ़) । भावार्थ-१-उस काल उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था (वर्णन)। द्युतिपलाश नामक उद्यान था (वर्णन)। उसमें एक पृथ्वी-शिलापट्ट था। उस वाणिज्यग्राम नगर में सुदर्शन नामक सेठ रहता था। वह आढय यावत् अपरिभूत था। वह जीवाजीवादि तत्त्वों का जाननेवाला श्रमणोपासक था । श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे, यावत् परिषद् पर्युपासना करने लगी। भगवान् का आगमन सुनकर सुदर्शन सेठ बहुत हर्षित एवं संतुष्ट हुआ। वह स्नानादि कर एवं वस्त्रालंकारों से विभूषित होकर, कोरण्ट पुष्प की मालायुक्त छत्र धारण कर, अनेक व्यक्तियों के साथ पैदल चल कर भगवान के दर्शनार्थ गया । नौवें शतक के तेतीसवें उद्देशक में ऋषभदत्त के प्रकरण में कथित पांच अभिगम करके वह सुदर्शन सेठ, भगवान् की तीन प्रकार की पर्युपासना करने लगा। भगवान् ने उस महापरिषद् को और सुदर्शन सेठ को 'आराधक बनने' जैसी धर्म-कथा कही । धर्म-कथा सुनकर सुदर्शन सेठ अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए। उन्होंने खड़े होकर भगवान को तीन बार प्रदक्षिणा की और वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार पूछा। २ प्रश्न-कइविहे णं भंते ! काले पण्णत्ते ? २ उत्तर-सुदंसणा ! चउविहे काले पण्णत्ते, तंजहा-१ पमाणकाले २ अहाउणिव्वत्तिकाले ३ मरणकाले ४ अद्धाकाले । ३ प्रश्न-से किं तं पमाणकाले ? ३ उत्तर-पमाणकाले दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-दिवसप्पमाणकाले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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