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________________ १९१४ भगवती सूत्र-श. ११ उ. १० आकाश के प्रदेश पर जीव-प्रदेश २२ प्रश्न-लोयस्स णं भंते ! एगमि आगासपएसे जहण्णपए जीवपएसाण उबकोसपए जीवपएसाणं, सव्वजीवाणं य कयरे कयरे० जाव विसेसाहिया वा ? २२ उत्तर-गोयमा ! सव्वत्थोवा लोयस्स एगंमि आगासपएसे जहण्णपए जीवपएसा, सव्वजीवा असंखेज्जगुणा, उपकोसपए जीव. पएसा विसेसाहिया। ® सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ॥ एक्कारससए दसमोइसो समत्तो॥ भावार्थ-२२ प्रश्न-हे भगवन् ! लोक के एक आकाश प्रदेश पर जघन्य पद में रहे हुए जीव-प्रदेश, उत्कृष्ट पद में रहे हुए जीव-प्रदेश और सभी जीव, इनमें कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? - २२ उत्तर-हे गौतम ! लोक के एक आकाश-प्रदेश पर जघन्य पद में रहे हुए जीव-प्रदेश सब से थोड़े हैं। उससे सभी जीव असंख्यात गुण हैं, उससे एक आकाशप्रदेश पर उत्कृष्ट पद से रहे हुए जीव-प्रदेश विशेषाधिक है। .. हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है-ऐसा कहकर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ॥ग्यारहवें शतक का दसवाँ उद्देशक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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