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१९०८
भगवती सूत्र-श. ११ उ. १० लोफ की विशालता
भावार्थ-१९ प्रश्न-हे भगवन् ! लोक कितना बड़ा कहा है ?
१९ उत्तर-हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक यह द्वीप, समस्त द्वीप और समुद्रों के मध्य में है । इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस (३१६२२७) योजन, तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है । यदि महद्धिक यावत् महासुख सम्पन्न छह देव, मेरु पर्वत पर उसकी चूलिका के चारों तरफ खड़े रहें और नीचे चार दिशाकुमारी देवियां चार बलिपिण्ड लेकर जम्बूद्वीप की जगती पर चारों दिशाओं में बाहर की ओर मुंह करके खड़ी होवें, फिर वे देवियां एक साथ चारों बलिपिण्डों को बाहर फेंके। उसी समय उन देवों में से प्रत्येक देव चारों बलिपिण्डों को पृथ्वी पर गिरने के पहले ही ग्रहण करने में समर्थ हैं-ऐसी तीव्र गति वाले उन देवों में से एक देव उत्कृष्ट यावत् तीव्र गति से पूर्व में, एक देव पश्चिम में, एक देव उत्तर में, एक देव दक्षिण में, एक देव ऊर्ध्वदिशा में और एक देव अधोदिशा में जावे, उपी दिन, उसी समय एक गाथापति के, एक हजार वर्ष की आयुष्य वाला एक बालक हआ। बाद में उस बालक के माता-पिता कालधर्म को प्राप्त हो गये, उतने समय में भी वे देव, लोक का अन्त प्राप्त नहीं कर सकते । वह बालक स्वयं आयुष्य पूर्ण होने पर काल-धर्म को प्राप्त हो गया, उतने समय में भी वे देव, लोक का अन्त प्राप्त नहीं कर सकते । उस बालक के हाड़ और हाड़ को मज्जा विनष्ट हो गई, तो भी वे देव, लोक का अन्त प्राप्त नहीं कर सकते। उस बालक की सात पीढ़ी तक कुलवंश नष्ट हो गया, तो उतने समय में भी वे देव, लोक का अन्त प्राप्त नहीं कर सकते । पश्चात् उस बालक के नाम-गोत्र भी नष्ट हो गये, उतने समय तक चलते रहने पर भी वे देव, लोक के अन्त को प्राप्त नहीं कर सकते।
(प्रश्न) हे भगवन् ! उन देवों का गत (गया हुआ-उल्लंघन किया हआ) क्षेत्र अधिक है, या अगत (नहीं गया हुआ) क्षेत्र अधिक है ?
(उत्तर) हे गौतम ! गत-क्षेत्र अधिक है। अगत-क्षेत्र थोड़ा है । अगतक्षेत्र, गत-क्षेत्र के असंख्यातवें भाग है । अगत-क्षेत्र से गत-क्षेत्र असंख्यात गुणा है। हे गौतम ! लोक इतना बड़ा है।
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