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भगवती सूत्र-श. ११ उः १० लोक के द्रव्यादि भेद
१३ प्रश्न-लोए णं भंते ! किं जीवा ? . १३ उत्तर-जहा बिईयसए अथिउद्देसए लोयागासे, णवरं अरूवी सत्तविहा, जाव-अहम्मत्थिकायस्स पएसा, णोआगासस्थिकाए, आगासस्थिकायस्स देसे, आगासस्थिकायपएसा, अद्धासमए, सेसं तं चेव ।
१४ प्रश्न-अलोए णं भंते ! किं जीवा० ?
१४ उत्तर-एवं जहा अत्थिकायउद्देसए अलोयागासे, तहेव गिरवसेसं जाव अणंताभागूणे।
कठिन शब्दार्थ-तप्पागारसंठिए-त्रापा (तिपाई) के आकार, मल्लरिसंठिए-झालर के आकार, उड्डमुइंग--ऊर्ध्व मृदंग, सुपइट्ठ--सुप्रतिप्टक (शराव) विच्छिण्णे-विस्तीर्ण, संविखते-संक्षिप्त, झूसिर-पोला ।
भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन ! अधोलोक क्षेत्रलोक का कैसा संस्थान है ? ६ उत्तर-हे गौतम ! त्रपा (तिपाई) के आकार है। ७ प्रश्न-हे भगवन् ! तिर्यग्लोक क्षेत्रलोक का संस्थान कैसा है ? ७ उत्तर-हे गौतम ! झालर के आकार का है। ८ प्रश्न-हे भगवन् ! ऊर्ध्वलोक क्षेत्र लोक का कैसा संस्थान है ? . . ८ उत्तर-हे गौतम ! ऊर्ध्व मृदंग के आकार है। ९ प्रश्न-हे भगवन् ! लोक का कैसा संस्थान है ?
९ उलर-हे गौतम ! लोक सुप्रतिष्ठक (शराव) के आकार है । यथावह नीचे चौड़ा है। मध्य में संक्षिप्त (संकीर्ण) है, इत्यादि सातवें शतक के प्रथम उद्देशक में कहे अनुसार जानना चाहिये । उस लोक को उत्पन्न ज्ञान-दर्शन के धारक केवलज्ञानी जानते हैं। इसके पश्चात् वे सिद्ध होते हैं यावत् समस्त दुःखों का अन्त करते हैं।
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