________________
१८९८
भगवती सूत्र-श. ११ उ. १० लोक के द्रव्यादि भेद
- २ उत्तर-हे गौतम ! तीन प्रकार का कहा गया है। यथा-१ अधोलोक क्षेत्रलोक २ तिर्यग्लोक क्षेत्रलोक, ३ ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक ।
३ प्रश्न-हे भगवन् ! अधोलोक क्षेत्रलोक कितने प्रकार का कहा गया
३ उत्तर-हे गौतम ! सात प्रकार का कहा गया है । यथा-रत्नप्रभापृथ्वी अधोलोक क्षेत्रलोक, यावत् अधःसप्तमपृथ्वी अधोलोक क्षेत्रलोक ।
४ प्रश्न-हे भगवन् ! तिर्यग्लोक क्षेत्रलोक कितने प्रकार का कहा गया है ?
४ उत्तर-हे गौतम ! असंख्य प्रकार का कहा गया है । यथा-जम्बूद्वीपतिर्यग्लोक क्षेत्रलोक यावत् स्वयंभूरमणसमुद्र तिर्यग्लोक क्षेत्रलोक ।
५ प्रश्न-हे भगवन् ! ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक कितने प्रकार का कहा गया है ?
५ उत्तर-हे गौतम ! पन्द्रह प्रकार का कहा गया है। यथा-(१-१२) सौधर्मकल्प ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक यावत् अच्युत्कल्प ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक । १३ ग्रेवे. यक विमान ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक । १४ अनुत्तरविमान ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक । १५ ईषत्प्राग्भार पृथ्वी ऊर्ध्वलोक क्षेत्रलोक।
विवेचन-धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय से व्याप्त सम्पूर्ण द्रव्यों के आधाररूप चौदह राजु परिमाण आकाशखण्ड को 'लोक' कहते हैं । वह लोक चार प्रकार का है। उनमें से द्रव्य लोक के दो भेद हैं-आगमतः और नोआगमतः । जो 'लोक' शब्द के अर्थ को जानता हैं, किंतु उसमें उपयोग नहीं है, उसे 'आगमतः द्रव्यलोक' कहते हैं। नोआगमतः द्रव्यलोक के तीन भेद किये गये हैं । यथा-१ जशरीर, २ भव्यशरीर, ३ तद्व्यतिरिक्त । जिस प्रकार जिस घड़े में घी भरा था, वह घी निकाल लेने पर भी 'घी का घड़ा' कहा जाता है, इसी प्रकार जिस व्यक्ति ने पहले 'लोक' शब्द का अर्थ जाना था उसके मत शरीर को 'ज्ञशरीर द्रव्यलोक' कहते हैं । जिस प्रकार भविष्य में राजा की पर्याय प्राप्त करने के योग्य राजकुमार को 'भावी राजा' कहा जाता है, तथा भविष्य में जिस घट में मधु रखा जायगा, उस घट को अभी से 'मधुघट' कहा जाता है, उसी प्रकार जो व्यक्ति भविष्य में लोक शब्द के अर्थ को जानेगा, उसके सचेतन शरीर को 'भव्यशरीर द्रव्यलोक' कहते हैं। धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों को 'ज्ञशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य लोक' कहते हैं ।
क्षेत्र रूप लोक को 'क्षेत्र-लोक' कहते हैं । उसके भेद ऊपर बतलाये गये हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org