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________________ भगवती सूत्र - ११ उ. १ उत्पल के जीव गमन करता है । इसी प्रकार तेइंद्रिय और चौइंद्रिय के विषय में भी जानना चाहिये । ३५ प्रश्न - हे भगवन् ! वह उत्पल का जीव, पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनि में जाकर पुनः उत्पलपने उत्पन्न हो, तो इस प्रकार कितने काल तक गमनागभन करता है ? १८६३ ३५ उत्तर - हे गौतम! भवादेश से जवन्य दो भव, उत्कृष्ट आठ भव और कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्वकाल तक गमनागमन करता है । इसी प्रकार मनुष्य योनि का भी जानना चाहिये । विवेचन - उत्पल का जीव उत्पलपने उत्पन्न होता रहे, इसे 'अनुवन्ध' कहते हैं । उत्पल का जीव पृथ्वीकायादि दूसरी कायों में उत्पन्न होकर पुनः उत्पलपने उत्पन्न हो, इसे 'काय संवेध' कहते हैं । यह भवादेश और कालादेश की अपेक्षा से दो प्रकार का है । उत्पल का जीव भवादेश की अपेक्षा कितने भव करता है और कालादेश की अपेक्षा कितने काल तक गमनागमन करता है, इत्यादि बातों का वर्णन इस सूत्र में किया गया है । ३६ प्रश्न - ते णं भंते ! जीवा किमाहारमाहारेति ? ३६ उत्तर - गोयमा ! दव्वओ अनंतपएसियाई दव्वाई, एवं जहा आहारुस वणस्सइकाइयाणं आहारो तहेव जाव सव्वप्पणयाए आहारमाहारेंति । णवरं गियमा छद्दिसिं सेसं तं चैव । ३७ प्रश्न - तेसि णं भंते! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता । ३७ उत्तर - गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं दस वाससहस्साई । ३८ प्रश्न - तेसि णं भंते ! जीवाणं कइ समुग्धाया पण्णत्ता ? ३८ उत्तर - गोयमा ! तओ समुग्धाया पण्णत्ता । तं जहा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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