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________________ १८६२ भगवती सूत्र-श. ११ उ. १ उत्पल के जीव गइरागई करेजा। कठिन शब्दार्थ-भवादेसेणं-भवादेश से अर्थात् भव की अपेक्षा, गइरागई-गति आगति-गमनागमन । भावार्थ-३० प्रश्न-हे भगवन् ! वह उत्पल का जीव, उत्पलपने कितने काल तक रहता है ? ३० उत्तर-हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्य काल तक रहता है। • ३१ प्रश्न-हे भगवन् ! वह उत्पल का जीव, पृथ्वीकाय में जावे और पुनः उत्पल में आवे, इस प्रकार कितने काल तक गमनागमन करता है ? ३१ उत्तर-हे गौतम ! भवादेश (भव की अपेक्षा) से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट असंख्यात भव तक गमनागमन करता है । कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक गमनागमन करता है। ३२ प्रश्न-हे भगवन् ! वह उत्पल का जीव, अप्कायपने उत्पन्न हो कर पुनः उत्पल में आवे, तो इस प्रकार कितने काल तक गमनागमन करता है ? ___ ३२ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार पृथ्वीकाय के विषय में कहा है, उसी प्रकार अप्काय के विषय में यावत् वायुकाय तक कहना चाहिए। ३३ प्रश्न-हे भगवन् ! वह उत्पल का जीव वनस्पति में आवे और पुनः उसी में उत्पन्न हो, इस प्रकार कितने काल तक गमनागमन करता है ? ३३ उत्तर-हे गौतम ! भवादेश से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट अनन्त भव तक गमनागमन करता है, कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्त काल (वनस्पति काल) तक गमनागमन करता है। ३४ प्रश्न-हे भगवन् ! वह उत्पल का जीव बेइंद्रिय में जाकर पुनः उत्पल में ही आवे, तो इस प्रकार कितने काल तक गमनागमन करता है ? ३४ उत्तर-हे गौतम ! भवादेश से जघन्य दो भव, उत्कृष्ट संख्यात भव और कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात काल तक गमना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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