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________________ भगवती सूत्र - ११ उ. १ उत्पल के जीव वेदक है । इत्यादि पूर्वोक्त आठ भंग जानने चाहिये । ११ प्रश्न - हे भगवन् ! वे उत्पल के जीव ज्ञानावरणीय कर्म के उदय वाले हैं या अनुदय वाले ? ११ उत्तर - हे गौतम! वे जीव, ज्ञानावरणीय कर्म के अनुदय वाले नहीं, परन्तु एक जीव हो तो एक और अनेक जीव हों तो अनेक ( - सभी जीव ) उदय वाले हैं । इसी प्रकार यावत् अन्तराध कर्म तक जानना चाहिये । १२ प्रश्न - हे भगवन् ! वे उत्पल के जीव, ज्ञानावर गीय-कर्म के उदीरक हैं या अनुदीरक ? उत्तर - हे गौतम! वे अनुदीरक नहीं, परन्तु एक जीव हो तो एक और अनेक जीव हों तो अनेक जीव उदीरक हैं । इसी प्रकार यावत् अन्तराय-कर्म तक जानना चाहिये । परन्तु इतनी विशेषता है कि वेदनीय कर्म और आयुष्यकर्म में पूर्वोक्त आठ भंग कहने चाहिये । ૮૪ विवेचन- उत्पल के प्रारम्भ में जब वह एक ही पत्ते वाला होता है, तब एक ही जीव होने से एक जीव ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का बन्धक होता है, परन्तु जब वह अनेक पत्तों वाला हो जाता हैं तब उसमें अनेक जीव होने से अनेक जीव बन्धक होते हैं । आयुष्यकर्म तो सम्पूर्ण जीवन में एक ही बार बन्धता है, उस बन्धकाल के अतिरिक्त जीव आयुष्यकर्म का अबन्धक होता है । इसलिये आयुष्य-कर्म के बन्धक और अबन्धक की अपेक्षा आठ भंग होते. हैं अर्थात् असंयोगी चार और द्विक संयोगी चार भंग होते हैं । वेदक द्वार में भी एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा दो भंग होते हैं । परन्तु सातावेदनीय और असातावेदनीय की अपेक्षा पूर्वोक्त आठ भंग होते हैं। उदीरणा द्वार में छह कर्मों में दो भंग होते हैं और वेदनीय तथा आयुष्य-कर्म के पूर्वोक्त आठ भंग होते हैं । Jain Education International १३ प्रश्न - ते णं भंते ! जीवा किं कण्हलेसा णीललेसा काउलेसा तेउलेसा ? ११३ उत्तर - गोयमा ! कण्हलेसे वा जाव तेउलेसे वा कण्हलेस्सा For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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