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________________ १५८२ भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३१ असोग्चा केवली होता । इसलिये हे गौतम ! यावत् सुने बिना शुद्ध बोधि प्राप्त नहीं करते। ३ प्रश्न-असोचा णं भंते ! केलिस्स वा, जाव तप्पक्खियउवासियाए वा केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्व। एजा ? ३ उत्तर-गोयमा ! असोचा णं केवलिस्स वा जाव उवासियाए वा अत्थेगइए केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्बएज्जा; अत्यंगइए केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं णो पव्वएजा। प्रश्न-से केणटेणं जाव णो पव्वएजा ? उत्तर-गोयमा ! जस्स णं धम्मंतराइयाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइ से णं असोचा केवलिस्स वा जाव केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वएजा; जस्स णं धम्मंतराइयाणं कम्माणं खओवसमे णो कडे भवइ से णं असोचा केवलिस्स वा जाव मुंडे भवित्ता जाव णो पव्वएजा, से तेणटेणं गोयमा ! जाव णो पव्वएजा। . .. कठिन शब्दार्थ-मुंडे भवित्ता-मुंडित (दीक्षित) होकर, अगाराओ अणगारियंगृहस्थवास से अनगार (साधु) पन को, पधएज्जा-प्रव्रज्या स्वीकार करे, धम्मंतराइयाणधर्म में वाधक होने वाले । ... .. भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! केवली आदि के पास सुने बिना क्या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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