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भगवती मूत्र-दा. ९ उ. ३१ अमोच्चा केवली
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उवासियाए वा केवलं बोहिं बुझेजा ?
२ उत्तर-गोयमा ! असोचा णं केवलिस्स वा जाव अत्थेगइए केवलं बोहिं बुझेजा, अत्थेगइए केवलं वोहिं णो बुज्झेजा।
प्रश्न-से केणटेणं भंते ! जाव णो बुज्झेजा ?
उत्तर-गोयमा ! जस्स णं दरिसणावरणिजाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइ से णं असोचा केवलिस्स वा जाव केवलं बोहिं बुझेजा; जस्स णं दरिसणावरणिजाणं कम्माणं खओवसमे णो कडे भवइ मे णं असोचा केवलिस्स वा जाव केवलं बोहिं णो बुझेजा; मे तेणटेणं जाव णो बुज्झेजा।
कठिन शब्दार्थ-बोहि बुझेज्जा-बोधि (समझ-सम्यग्दर्शन) प्राप्त करे-अनुभव करे।
भावार्थ-२ प्रश्न-हे भगवन् ! केवली यावत् केवलिपाक्षिक की उपासिका से सुने बिना ही कोई जोव शुद्धबोधि (सम्यग्दर्शन) प्राप्त करता है ? '
२ उत्तर-हे गौतम ! केवली आदि के पास सुने बिना कुछ जीव शुद्धबोधि प्राप्त करते हैं और कितनेक जीव शुद्ध बोधि प्राप्त नहीं करते।
प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा किस कारण कहा गया कि यावत् शुद्धबोधि को प्राप्त नहीं करते ?
उत्तर-हे गौतम ! जिस जीव ने दर्शनावरणीय (दर्शनमोहनीय) कर्म का क्षयोपशम किया है, उस जीव को केवली आदि के पास सुने बिना ही शुद्धबोधि का लाभ होता और जिस जीव ने दर्शनावरणीय का क्षयोपशम नहीं किया, उप्त जीव को केवली आदि के पास सुने बिना शुद्धबोधि का लाभ नहीं
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