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भगवती सूत्रा १० उ ५ चमरेन्द्र का परिवार
णिज्जाओ णर्ममणिज्जाओ पूयणिजाओ सक्कारणिजाओ सम्माणणिजाओ कल्लाणं मंगलं देवयं चेहयं पज्जुवासणिजाओ भवंति, तेसिं पणिहाए णो पभू, से तेणट्टेणं अजो ! एवं वुच्चइ - ' णो पभू चमरे असुरिंदे जाव चमरचंचाए जाव विहरित । (प्र० ) प णं अजो ! चमरे अमुरिंदे असुरकुमारराया चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसि चउसडीए सामाणीयसाहस्सी हिं तायत्तीसाए जाव अण्णेहिं च बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहि य देवीहि यसद्धि संपरिबुडे महयाहय - जाव भुंजमाणे विहरित्तए ? ( उ० ) केवलं परियारिड्ढीए, णो चेव णं मेहुणवत्तियं ।
कठिन शब्दार्थ - अग्गमहिसी - अग्रमहिषी-पटरानी, एबामेव- इसी प्रकार, तुडिएत्रुटिक-वर्ग, वइरामएसु - वज्रमय, गोल बट्टस मुग्गएसु- वृत्ताकार गोल डिब्बों में, जिणसकहाओजिनसक्थि - जिनेन्द्र भगवान् की अस्थियाँ, अच्चणिज्जा-अर्चनीय, पणिहाए- प्रणिधान में ।
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भावार्थ - १ - उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था । वहाँ गुणशीलक नामक उद्यान था । ( वहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी समवसरे) यावत् परिषद् धर्मोपदेश सुनकर लौट गई। उस काल उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के बहुत-से अन्तेवासी (शिष्य) स्थविर भगवान् जाति सम्पन्न
face सातवें उद्देशक में कहे अनुसार विशेषण विशिष्ट यावत् विचरते थे । वे स्थविर भगवान् जानते की श्रद्धावाले यावत् संशय वाले होकर गौतम स्वामी के समान पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले
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२ प्रश्न - हे भगवन् ! असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के कितनी अग्रमहिषियाँ ( पटरानियाँ) कही गई हैं ?
२ उत्तर - हे आर्यों ! चमरेन्द्र के पांच अग्रमहिषियों कही गई है । यथा
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