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भगवती मूत्र-ग. १० उ. ५ चमरेन्द्र का परिवार
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नए उत्पन्न होते हैं'-तक जानना चाहिए।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक-ये चार प्रकार के देव हैं। इनमें से भवनपति और वैमानिक देवों में तो त्रायस्त्रिशक देव होते हैं, किंतु वाणव्यन्तर और ज्योतिषी देवों में प्रायस्त्रिशक देव नहीं होते, इसलिए. भवनपति और वैमानिक देवों के ही वायस्त्रिशक देवों का वर्णन आया है।
॥ इति दशवें शतक का चतुर्थ उद्देशक समाप्त ॥
शतक १० उद्देशक ५
चमरेन्द्र का परिवार
१-तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णामं णयरे । गुणसिलए चेइए, जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स वहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जाइ. संपण्णा कुलसंपण्णा जहा अट्ठमे सए सत्तमुद्देसए जाव विहरति । तएणं ते थेरा भगवंतो जायसड्ढा जायसंसया जहा गोयमसामी, जाव पज्जुवासमाणा एवं वयासी.२. प्रश्न-चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो कइ
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