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________________ १८१८ भगवती सूत्र-ग. १० उ. ४ शकेन्द्र के प्रायस्त्रिशेक देव ७ प्रश्न-हे भगवन् ! देवेन्द्र देवनाज शक्र के त्रास्त्रिशक देव हैं ? ७ उत्तर-हाँ, गौतम ! हैं। प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि देवेन्द्र देवराज शक के त्रास्त्रिशक देव हैं ? उत्तर-हे गौतम ! शक्र के त्रास्त्रिशक देवों का सम्बन्ध इस प्रकार है उस काल उस समय में इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में पलाशक नाम का सनिवेश था (वर्णन)। वहां परस्पर सहायता करने वाले तेतीस श्रमणोपासक रहते थे। इत्यादि पूर्वोक्त वर्णन कहना चाहिये । वे तेतीस श्रमणोपासक पहले भी और पीछे भी उग्र, उग्रविहारी, संविग्न और संविग्न विहारी होकर बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक पर्याय का पालन कर, मासिक संलेखना द्वारा शरीर को कृश कर, साठ भक्त अनशन का छेदन कर, आलोचना और प्रतिक्रमण कर और काल के अवसर समाधिपूर्वक काल करके, शक के त्रास्त्रिशक देवपने उत्पन्न हुए हैं, इत्यादि सारा वर्णन चमरेन्द्र के समान कहना चाहिये । यावत् 'पुराने चवते हैं, और नये उत्पन्न होते हैं -तक कहना चाहिये। ८ प्रश्न-हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान के त्रास्त्रिशक देव हैं ? ८ उत्तर-हे गौतम ! शक्रेन्द्र के समान ईशानेन्द्र का भी वर्णन जानना चाहिये । इसमें इतनी विशेषता है कि ये श्रमणोपासक चम्पा नगरी में रहते थे। शेष सारा वर्णन शक्रेन्द्र के समान जानना चाहिये। ९ प्रश्न-हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार के त्रास्त्रिशक देव हैं ? ९ उत्तर-हां गौतम ! हैं। प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है कि देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार के त्रायस्त्रिशक देव है ? उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार धरणेन्द्र के विषय में कहा है, उसी प्रकार सनत्कुमार के विषय में भी जानना चाहिए। इसी प्रकार यावत् प्राणत तक जानना चाहिए और इसी प्रकार अच्युत तक जानना चाहिए, यावत् 'पुराने चवते हैं और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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