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________________ १८१६ भगवती सूत्र - श. १० उ. ४ शक्रेन्द्र के त्रायस्त्रक देव त्रास्त्र देवपने उत्पन्न हुए, तब से क्या ऐसा कहा जाता है कि बलि के त्रास्त्रशक देव हैं, इत्यादि पूर्वोक्त सभी वर्णन कहना चाहिये । यावत् 'वे नित्य हैं, अव्युच्छिति नय की अपेक्षा पुराने चते हैं और नये उत्पन्न होते हैं' - तक कहना चाहिये । ६ प्रश्न - हे भगवन् ! नागकुमारेन्द्र नागकुमार राज धरण के त्रायस्त्रिशक देव हैं ? ६ उत्तर - हाँ, गौतम ! हैं । प्रश्न - हे भगवन् ! किस कारण से कहते हैं कि नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण के त्रास्त्रिशक देव हैं ? उत्तर - हे गौतम! नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण के त्रायस्त्रशक देवों के नाम शाश्वत कहे गये हैं । 'वे कभी नहीं थे' - ऐसा नहीं, 'नहीं रहेंगे'ऐसा भी नहीं, यावत् पुराने चवते हैं और नये उत्पन्न होते है । इसी प्रकार भूतानन्द यावत् महाघोष इन्द्र के त्रास्त्रिशक देवों के विषय में जानना चाहिये । शक्रेन्द्र के त्रयस्त्रिंशक देव ७ प्रश्न - अत्थि णं भंते ! सक्करस देविंदस्स, देवरण्णो पुच्छा ? ७ उत्तर - हंता अस्थि । (प्र०) से केद्रेणं जाव तायत्तीसगा देवा, तायत्तीसगा देवा ? ( उ० ) एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समरणं इव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पलासए णामं सष्णिवेसे होत्था । वण्णओ । तत्थ णं पलासए सण्णिवेसे तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासया जहा चमरस्स जाव विहरति । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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