SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८०४ भगवती सूत्र-श. १० उ. ३ देवों के मध्य में होकर निकलने की क्षमता देवीए तहेव, महिड्ढिया वि देवी अप्पड्ढियाए देवीए तहेव, एवं एक्कक्के तिण्णि तीण्ण अलावगा भाणियब्वा, जाव-(प्र०) महड्ढिया णं भंते ! वेमाणिणी अप्पड्ढियाए वेमाणिणीए मझमझेणं वीइवएजा ? (उ०) हंता, वीइवएज्जा । सा भंते ! किं विमोहित्ता पभू० ? तहेव जाव पुट्विं वा वीइवइत्ता पच्छा विमोहेजा । एए चत्तारि दंडगा। भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या महद्धिक देव, अल्प ऋद्धिक देव के ठीक मध्य में होकर जा सकता है ? ६ उत्तर-हाँ, गौतम ! जा सकता है। ७ प्रश्न-हे भगवन् ! वह महद्धिक देव, उस अल्प ऋद्धिक देव को विमोहित करके जाता है अथवा विमोहित किये बिना जाता है ? ७ उत्तर-हे गौतम ! विमोहित करके भी जा सकता है और विमोहित किये बिना भी जा सकता है। ८ प्रश्न-हे भगवन् ! वह महद्धिक देव, उसे पहले विमोहित करके पीछे जाता है, अथवा पहले जाता है और पीछे विमोहित करता है ? ८ उत्तर-हे गौतम ! वह महद्धिक देव पहले विमोहित करके पीछे भी जा सकता है और पहले जाकर पीछे भी विमोहित कर सकता है। . ९ प्रश्न-हे भगवन् ! अल्प ऋद्धिक असुरकुमार देव, महद्धिक असुरकुमार देव के बीचोबीच होकर जा सकता है ? ९ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। इस प्रकार सामान्य देव की तरह असुरकुमार के भी तीन आलापक कहने चाहिए । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक कहना चाहिए, तथा वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy