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भगवती सूत्र-श. १० उ. ३ देवों के मध्य में होकर निकलने की क्षमता
देवीए तहेव, महिड्ढिया वि देवी अप्पड्ढियाए देवीए तहेव, एवं एक्कक्के तिण्णि तीण्ण अलावगा भाणियब्वा, जाव-(प्र०) महड्ढिया णं भंते ! वेमाणिणी अप्पड्ढियाए वेमाणिणीए मझमझेणं वीइवएजा ? (उ०) हंता, वीइवएज्जा । सा भंते ! किं विमोहित्ता पभू० ? तहेव जाव पुट्विं वा वीइवइत्ता पच्छा विमोहेजा । एए चत्तारि दंडगा।
भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या महद्धिक देव, अल्प ऋद्धिक देव के ठीक मध्य में होकर जा सकता है ?
६ उत्तर-हाँ, गौतम ! जा सकता है।
७ प्रश्न-हे भगवन् ! वह महद्धिक देव, उस अल्प ऋद्धिक देव को विमोहित करके जाता है अथवा विमोहित किये बिना जाता है ?
७ उत्तर-हे गौतम ! विमोहित करके भी जा सकता है और विमोहित किये बिना भी जा सकता है।
८ प्रश्न-हे भगवन् ! वह महद्धिक देव, उसे पहले विमोहित करके पीछे जाता है, अथवा पहले जाता है और पीछे विमोहित करता है ?
८ उत्तर-हे गौतम ! वह महद्धिक देव पहले विमोहित करके पीछे भी जा सकता है और पहले जाकर पीछे भी विमोहित कर सकता है। .
९ प्रश्न-हे भगवन् ! अल्प ऋद्धिक असुरकुमार देव, महद्धिक असुरकुमार देव के बीचोबीच होकर जा सकता है ?
९ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। इस प्रकार सामान्य देव की तरह असुरकुमार के भी तीन आलापक कहने चाहिए । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक कहना चाहिए, तथा वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए।
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