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________________ भगवती सूत्र - ९ उ. २ जम्बूद्वीपादि में चन्द्रमा हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते है । १५७३ विवेचन - जम्बूद्वीप के वर्णन के विषय में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति मूत्र का अतिदेश किया गया है । जम्बूद्वीप स द्वीपों के मध्य में है । यह सब से छोटा द्वीप है और इसका आकार 'तेल अपूप' (तेल का मालपुआ ) रथचक्र और पुष्करकणिका तथा पूर्णचन्द्र के समान गोल है । यह एक लाख योजन लम्बा और चौड़ा है, यावत् इसमें चौदह लाख छप्पन हजार नदियाँ पूर्व समुद्र और पश्चिम समुद्र में जाकर गिरती हैं । इत्यादि सारा वर्णन जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र के अनुसार जानना चाहिये । ॥ इति नौवें शतक का प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण || शतक र उद्देशक २ Jain Education International जम्बूद्वीपादि में चन्द्रमा १ प्रश्न - रायगिहे जाव एवं वयासी - जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवड्या चंद्रा पभासिं वा, पभासेंति वा, पभासिस्संति वा ? १ उत्तर - एवं जहा जीवाभिगमे, जाव - "एगं च संयसहस्सं तेत्तीस खलु भवे सहस्साई । णव य सया पण्णासा तारागणकोडा - कोडी " । सोभं सोमिंसु, सोभिंति, सोभिस्संति । २ प्रश्न - लवणे णं भंते ! समुद्दे केवइया चन्दा पभासिंसु वा, पभासिंति वा, पभासिस्संति वा ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004089
Book TitleBhagvati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages578
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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