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भगवती सूत्र - ९ उ. २ जम्बूद्वीपादि में चन्द्रमा
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरते है ।
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विवेचन - जम्बूद्वीप के वर्णन के विषय में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति मूत्र का अतिदेश किया गया है । जम्बूद्वीप स द्वीपों के मध्य में है । यह सब से छोटा द्वीप है और इसका आकार 'तेल अपूप' (तेल का मालपुआ ) रथचक्र और पुष्करकणिका तथा पूर्णचन्द्र के समान गोल है । यह एक लाख योजन लम्बा और चौड़ा है, यावत् इसमें चौदह लाख छप्पन हजार नदियाँ पूर्व समुद्र और पश्चिम समुद्र में जाकर गिरती हैं । इत्यादि सारा वर्णन जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र के अनुसार जानना चाहिये ।
॥ इति नौवें शतक का प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण ||
शतक र उद्देशक २
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जम्बूद्वीपादि में चन्द्रमा
१ प्रश्न - रायगिहे जाव एवं वयासी - जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवड्या चंद्रा पभासिं वा, पभासेंति वा, पभासिस्संति वा ?
१ उत्तर - एवं जहा जीवाभिगमे, जाव - "एगं च संयसहस्सं तेत्तीस खलु भवे सहस्साई । णव य सया पण्णासा तारागणकोडा - कोडी " । सोभं सोमिंसु, सोभिंति, सोभिस्संति ।
२ प्रश्न - लवणे णं भंते ! समुद्दे केवइया चन्दा पभासिंसु वा, पभासिंति वा, पभासिस्संति वा ?
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