________________
भगवती सूत्र-श. ९ उ. ३३ जमाली चरित्र
एवं जहा उववाइए, जाव तिविहाए पज्जुवासणयाए पज्जुवासइ ।
कठिन शब्दार्थ-पच्चत्थिमेणं-पश्चिम दिशा, उप्पि-ऊपर के. पासायवरगए-उत्तम प्रासाद (भवन) में, फुट्टमाणेहि-अति आस्फालन से (बजाने से) आवाज करते हुए, मुइंगमत्थरहि-मृदंग के मस्तक से, णाडएहि-नाटक से, णाणाविहवरतरुणीसंपउत्तेहि-अनेक प्रकार की सुन्दर युवतियों से, उवणच्चिज्जमाणे-नचाता हुआ, उवगिज्जमाणे-स्तुति कराता हुआ उवलालिज्जमाणे-काम-क्रीड़ा करता हुआ, पाउस-प्रावृट्, वासारत्त-वर्षा, गिम्हपज्जतेग्रीष्म पर्यन्त, छप्पि-छह, जहाविभवेणं-अपने वैभव के अनुसार, माणमाणे-सुखानुभव करता हुआ, कालं गालेमाणे-समय व्यतीत करता हुआ, पच्चणुब्भवमाणे अनुभव करता हुआ।
भावार्थ-८-उस ब्राह्मणकुण्ड ग्राम नामक नगर के पश्चिम दिशा में क्षत्रियकुण्ड ग्राम नामक नगर था। उस क्षत्रियकुण्ड ग्राम नामक नगर में जमाली नाम का क्षत्रियकुमार रहता था। वह आढय, (धनिक) दीप्त-तेजस्वी यावत् अपरिभूत था । वह अपने उत्तम भवन पर, जिसमें मृदंग बज रहे हैं, अनेक प्रकार की सुन्दर युवतियों द्वारा सेवित है, बत्तीस प्रकार के नाटकों द्वारा हस्तपादादि अवयव जहां नचाए जा रहे हैं, जहां बारबार स्तुति की जा रही है, अत्यन्त खुशियां मनाई जा रही हैं, उस भवन में प्रावट, वर्षा, शरद, हेमन्त, बसन्त और ग्रीष्म, इन छह ऋतुओं में अपने वैभव के अनुसार सुख का अनुभव करता हुआ, समय बिताता हुआ, मनुष्य सम्बन्धी पांच प्रकार के इष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध, इन काम भोगों का अनुभव करता हुआ रहता था।
क्षत्रियकुंड ग्राम नामक नगर में शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क और चत्वर में यावत् बहुत-से मनुष्यों का कोलाहल हो रहा था, इत्यादि सारा वर्णन औपपातिक सूत्र में कहे अनुसार जानना चाहिये, यावत् बहुत-से मनुष्य परस्पर इस प्रकार कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि-'हे देवानुप्रियो ! आदिकर (धर्म-तीर्थ की आदि करने वाले) यावत् सर्वज्ञ-सर्वदर्शी, श्रमण भगवान महावीर स्वामी, इस ब्राह्मगकुंड ग्राम नगर के बाहर, बहुशाल नामके उदयान में यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके यावत् विचरते हैं । हे देवानप्रियो ! तथारूप अरिहन्त भगवान् के
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org