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भगवती सूत्र-श. ७ उ. ६ ककंश अकर्कश वेदनीय
७ उत्तर-हां, गौतम ! बांधते हैं। ८ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव, कर्कश-वेदनीय कर्म किस प्रकार बांधते हैं ?
८ उत्तर-हे गौतम ! प्राणातिपात के सेवन से यावत् मिथ्यादर्शनशल्य, इन अठारह पापों के सेवन से जीव, कर्कश वेदनीय कर्म बांधते हैं।
९ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या नरयिक जीव, कर्कश-वेदनीय कर्म बांधते
९ उत्तर-हां, गौतम ! बांधते हैं। यावत् वैमानिक पर्यन्त इसी तरह कहना चाहिये।
___ १० प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीव, अकर्कश-वेदनीय (सुख पूर्वक भोगने योग्य) कर्म बांधते हैं ?
१० उत्तर-हाँ, गौतम ! बांधते हैं।
११ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव, अकर्कश-वेदनीय (अति सुखपूर्वक भोगने योग्य ) कर्म किस प्रकार बांधते हैं ?
११ उत्तर-हे गौतम ! प्राणातिपात विरमण से यावत् परिग्रह विरमण से तथा क्रोध विवेक (क्रोध का त्याग)से यावत मिथ्यादर्शनशल्य विवेक (त्याग) से जीव, अकर्कश-वेदनीय कर्म बांधते हैं।
१२ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिक जीव, अकर्कश-वेदनीय कर्म बांधते हैं ? ...१२ उत्तर-हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं। इस तरह यावत् वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिये । परन्तु मनुष्यों के विषय में औधिक जीवों की तरह कथन करना चाहिये।
- विवेचन-नरयिक जीव, सदा दुःखरूप वेदना वेदते हैं, किन्तु नरकपालादि (परमाधार्मिक देव आदि) का संयोग न होने पर एवं तीर्थङ्कर भगवान् के जन्म महोत्सव आदि. प्रसंग पर कदाचित् सुखरूप वेदना वेदते हैं। असुरकुमारादि जीव, भव-प्रत्यय के कारण एकान्त साता वेदना वेदते हैं, किन्तु प्रहारादि के लगने से कदाचित् असाता वेदना वेदते हैं।
जव कर्कश-वेदनीय कर्म बांधते हैं । जैसे कि स्कन्दक आचार्य के शिष्यों ने पहले के किसी भव में बांधा था । जीव अकर्कश-वेदनीय बाँधते हैं। जैसे कि भरत चक्रवर्ती
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