________________
भगवती सूत्र-श. ७ उ. ६ आयु का बन्ध और वेदन कहां होता है ?
११५१
तओ पच्छ एगंतसायं वेयणं वेदेइ, आहच असायं । एवं जाव थणियकुमारेसु । ___५ प्रश्न-जीवे णं भंते ! जे भविए पुढविक्काइएसु उववजित्तए पुन्छ ।
५ उत्तर-गोयमा ! इहगए सिय महावेयणे सिय अप्पवेयणे; एवं उववजमाणे वि, अहे णं उववण्णे भवइ तओ पच्छा वेमायाए वेयणं वेदेइ । एवं जाव मणुस्सेसु, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु जहा असुरकुमारेमु ।
कठिन शब्दार्थ-उववज्जित्तए-उत्पन्न होने योग्य, इहगए-इस भव में, उववज्जमाणेउत्पन्न होता हुआ, उववण्णे-उ-पन्न होने के बाद, पडिसंवेदेइ-करता है, आहच्च-कदाचित् । . भावार्थ-१ प्रश्न-राजगह नगर में गौतम स्वामी ने यावत इस प्रकार पूछा-हे भगवन् ! जो जीव, नरक में उत्पन्न होने योग्य है, वह जीव, इस भव में रहता हुआ नरक का आयुष्य बांधता है, या नरक में उत्पन्न होता हुआ नरक का आयुष्य बांधता है ? या नरक में उत्पन्न होने पर नरक का आयुष्य बांधता है.?
१ उत्तर-हे गौतम ! इस भव में रहा हुआ जीत, नरक का आयुष्य बांधता है, परन्तु नरक में उत्पन्न होता हुआ नरक का आयुष्य नहीं बांधता
और नरक में उत्पन्न होने के बाद भी नरक का आयुष्य नहीं बांधता । इस प्रकार असुरकुमारों में यावत् वैमानिकों तक में भी जान लेना चाहिए।
२ प्रश्न-हे भगवन् ! जो जीव, नरक में उत्पन्न होने योग्य है, वह इस भव में रहता हुआ नरक का आयुष्य वेदता है, या वहाँ उत्पन्न होता हुआ नरक का आयुष्य बेदता है, अथवा वहाँ उत्पन्न होने के बाद नरक का आयुष्य वेदता है ? ... २ उत्तर-हे गौतम ! इस भव में रहा हुआ जीव नरक के आयुष्य का
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org