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________________ ११२२ - भगवती सूत्र - श. ७ उ. २ सुप्रत्याख्यान दुष्प्रत्याख्यान पुच्छा । १३ उत्तर - गोयमा ! सव्वत्थोवा मणुस्सा मूलगुणपच्चर खाणी, उत्तरगुणपञ्चक्खाणी संखेज्जगुणा, अपचक्खाणी असंखेज्जगुणा । ११ प्रश्न - हे भगवन् ! मूलगुणप्रत्याख्यानी, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी जीवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? ११ उत्तर - हे गौतम! मूल-गुण- प्रत्याख्यानी जीव सब से थोड़े हैं, उत्तर- गुण- प्रत्याख्यानी जीव उनसे असंख्यगुणे हैं और अप्रत्याख्यानी जीव, उनसे भी अनन्तगुणे हैं । १२ प्रश्न - हे भगवन् ! इन मूलगुण- प्रत्याख्यानी आदि जीवों में पंचेंद्रियतिर्यंच जीव कौन किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? १२ उत्तर - हे गौतम! मूल-गुण- प्रत्याख्यानी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च जीव सबसे थोडे है, उनसे उत्तरगुण- प्रत्याख्यानी असंख्यगुणे हैं और अप्रत्याख्यानी उनसे असंख्यगुणे हैं । कौन १३ प्रश्न - हे भगवन् ! इन मूलगुण- प्रत्याख्यानी आदि में मनुष्य किससे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? १३ उत्तर - हे गौतम! मूल-गुण- प्रत्याख्यानी मनुष्य सबसे थोडे हैं, उत्तर-गुण- प्रत्याख्यानी मनुष्य उनसे संख्यातगुणे हैं और अप्रत्याख्यानी मनुष्य उनसे असंख्यातगुणे हैं । १४ प्रश्न - जीवा णं भंते! किं सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी, देसमूलगुणपच्चक्खाणी, अपञ्चक्खाणी ? . १४ उत्तर - गोयमा ! जीवा सव्वमूलगुण पच्चक्खाणी, देसमूलगुणपच्चक्खाणी, अपचक्खाणी वि । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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