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________________ १५६२ भगवती सूत्र-श. ८ उ. १० कर्मों का पारस्परिक सम्बन्ध ४१ प्रश्न-जस्स णं भंते ! आउयं तस्स अंतराइयं-पुच्छा। ४१ उत्तर-गोयमा ! जस्स आउयं तस्स अंतराइयं सिय. अत्थि, सिय पत्थि; जस्स पुण अंतराइयं तस्स आउयं णियमं अत्थि । - भावार्थ-४१ प्रश्न-हे भगवन् ! जिसके आयुष्य कर्म होता है, उसके अन्तराय कर्म होता है इत्यादि प्रश्न ? ४१ उत्तर-हे गौतम ! जिसके आयुष्य कर्म होता है, उसके अन्तराय कर्म कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं भी होता, परन्तु जिसके अन्तराय कर्म होता है, उसके आयुष्य कर्म अवश्य होता है। ४२ प्रश्न-जस्स णं भंते ! णामं तस्स गोयं, जस्स णं गोयं तस्स णं णाम-पुच्छा। - ४२ उत्तर-गोयमा ! जस्स णं णामं तस्स णियमा गोय, जस्स णं गोयं तस्स णियमा णाम; दो वि एए परोप्परं णियमा अस्थि । . भावार्थ-४२ प्रश्न-हे भगवन् ! जिसके नाम कर्म होता है, उसके गोत्र कर्म होता है और जिसके गोत्र कर्म होता है, उसके नाम कर्म भी होता है ? ४२ उत्तर-हे गौतम ! जिसके नामकर्म होता है, उसके गोत्र-कर्म अवश्य होता है और जिसके गौत्र कर्म होता है, उसके नामकर्म भी अवश्य होता है। ये दोनों कर्म परस्पर नियम से होते हैं। ४३ प्रश्न-जस्स णं भंते ! णामं तस्स अंतराइयं-पुच्छा ? ४३ उत्तर-गोयमा ! जस्स णामं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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