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होता है, उसके वेदनीय कर्म नियना होता है ।
भगवती सूत्र - श. ८. उ. १० कर्मों का पारस्परिक सम्बन्ध
होता है ?
३९ प्रश्न - जस्स णं भंते ! मोहणिज्जं तस्स आउयं, जस्स णं भंते! आउयं तस्स मोहणिज्जं ?
३९ उत्तर---गोयमा ! जस्स मोहणिज्जं तस्स आउयं नियमं अस्थि, जस्स पुण आउयं तस्स पुण मोहणिज्जं सिय अस्थि, सिय नत्थि एवं णामं गोयं अंतराइयं च भाणियव्वं ।
भावार्थ - ३९ प्रश्न--हे भगवन् ! जिसके मोहनीय कर्म होता है, उसके कर्म होता है और जिसके आयुष्य कर्म होता है, उसके मोहनीय कर्म
३६ उत्तर- - हे गौतम! जिसके मोहनीय कर्म होता है, उसके आयुष्य कर्म अवश्य होता है। जिसके आयुष्य कर्म होता है, उसके मोहनीय कर्म कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं भी होता । इसी प्रकार नाम, गोत्र और अन्तराय कर्म के विषय में भी कहना चाहिये ।
४० प्रश्न--- जस्स णं भंते ! आज्यं तस्स णामं ४० उत्तर---गोयमा ! दो वि परोप्परं नियमं
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पुच्छा ।
एवं गोत्तेण वि
समं भाणियव्वं ।
भावार्थ - ४० प्रश्न - हे भगवन् ! जिसके आयुष्य कर्म होता है, उसके नाम कर्म भी होता है, इत्यादि प्रश्न ?
४० उत्तर - हे गौतम ! ये दोनों परस्पर नियम से होते हैं । इसी प्रकार गोत्र के साथ भी कहना चाहिये ।
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