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भगवती सूत्र - शं. ८ उ. १० जयन्यादि आराधना और आराधक १५४३
उक्कोसा ।
कठिन शब्दार्थ - - उक्कोसिया - उत्कृष्ट मज्झिमा -- मध्यम, जहण्णा -- जघन्य जम्मणं -- जिसके, अजहष्णमणुक्कोसा - अजघन्यानुत्कृष्ट ( मध्यम ) |
भावार्थ - २ प्रश्न - हे भगवन् ! आराधना कितने प्रकार की कही गई हैं ? २ उत्तर - हे गौतम! आराधना तीन प्रकार को कही गई है । यथा१ ज्ञान आराधना, २ दर्शन आराधना और ३ चारित्र आराधना ।
३ प्रश्न - हे भगवन् ! ज्ञान आराधना कितने प्रकार की कही गई है ? ३ उत्तर - हे गौतम ! तीन प्रकार की कही गई है । यथा-१ उत्कृष्ट २ मध्यम और ३ जघन्य ।
४ प्रश्न - हे भगवन् ! दर्शन आराधना कितने प्रकार की कही गई है। ? ४ उत्तर - हे गौतम ! ज्ञान आराधना के समान दर्शन आराधना भी तीन प्रकार की और चारित्र आराधना भी तीन प्रकार की कही गई है ।
५ प्रश्न - हे भगवन् ! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञान आराधना होती है, उसके उत्कृष्ट दर्शन आराधना होती है और जिस जीव के उत्कृष्ट दर्शन आराधना होती है, उस जीव के उत्कृष्ट ज्ञान आराधना होती है ।
५ उत्तर - हे गौतम! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञान आराधना होती है, उसके उत्कृष्ट या मध्यम दर्शन आराधना होती है। जिस जीव के उत्कृष्ट दर्शन आराधना होती है, उसके उत्कृष्ट या मध्यम या जघन्य ज्ञान आराधना होती है ।
६ प्रश्न - हे भगवन् ! जिस जीव के उत्कृष्ट ज्ञान आराधना होती हैं, उसके उत्कृष्ट चारित्र आराधना होती हैं, और जिस जीव के उत्कृष्ट चारित्र आराधना होती हैं, उसके उत्कृष्ट ज्ञान आराधना होती हैं ?
६ उत्तर - हे गौतम ! जिस प्रकार उत्कृष्ट ज्ञान आराधना और दर्शन आराधना के विषय में कहा, उसी प्रकार उत्कृष्ट ज्ञान आराधना और उत्कृष्ट चारित्र आराधना के विषय में भी कहना चाहिये ।
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