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भगगवथी सूत्र - श. ८ उ. ९ शरीर बंध का पारस्परिक सम्बन्ध
हैं । यद्यपि सिद्ध जीव-जो आयुष्य के अबंधक हैं, को भी यदि इसमें मम्मिलित कर लिया जाय, तो भी वे देश बंधकों से संख्यात गुण ही होते | क्योंकि सिद्ध आदि अबंधक अनन्त जीव भी अनन्तकायिक आयु-बन्धक जीवों के अनन्तवें भाग ही होते हैं ।
शंका- जब जीव आयुष्य-कर्म के अबंधक रहते हैं और फिर जिस ममय में बंधक होते हैं, उस समय में उन्हें सर्व बन्धक क्यों न कहा जाय ?
समाधान - जिस प्रकार आदारिक-शरीर को बांधते समय जीव प्रथम समय में शरीर योग्य मन्त्र पुद्गलों को एक साथ खींचता है, उस प्रकार अविद्यमान सारी आयु प्रकृति को नहीं बांधता, इसलिये आयुकर्म का सर्व-बन्ध नहीं होता ।
शरीर बन्ध का पारस्परिक सम्बन्ध
९४ प्रश्न - जम्स णं भंते ! ओरालियमरीरस्स सव्वबन्धे से णं भंते ! वेउव्वियसरीरस्स किं बन्धए, अवन्धए ?
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९४ उत्तर - गोयमा ! णो बन्धए, अबन्धए । ९५ प्रश्न - आहारगसरीरस्स किं बन्धए अवन्धए ? ९५ उत्तर - गोयमा ! णो बन्धए अवन्धए । ९६ प्रश्न - तेयासरीरस्स किं बंधए, अबन्धए ? ९६ उत्तर - गोयमा ! बंधए, णो अबन्धए । ९७ प्रश्न - जइ बन्धए किं देसबंध सव्वबंधए ? ९७ उत्तर - गोयमा ! वन्धए, जो सबन्धए ।
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९८ प्रश्न - कम्मासरीरस्स किं बंधए, अबंधए ? ९८ उत्तर - जहेव तेयगस्स, जाव देसबंधए, णो सव्वबंधए ।
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