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________________ १५२४ भगवती सूत्र-श. ८ उ. ९ कामण शरीर प्रयोग बंध ८५ उत्तर-गोयमा ! कायअणुज्जुययाए, जाव' विसंवायणा: जोगेणं असुभणामकम्मासरीर० जाव पओगबन्धे । कठिन शब्दार्थ-काउज्जयाए-काया (शरीर) को मरलता से, कायअणुज्जुययाएकाया की वक्रता से। भावार्थ-८४ प्रश्न-हे भगवन् ! शुभनाम कार्मण शरीर प्रयोग-बंध किस . कर्म के उदय से होता है ? ८४ उत्तर-हे गौतम ! काया को सरलता से, भाव को सरलता से, भाषा को सरलता से और अविसंवादन योग से तथा शुभनाम कामण-शरीरप्रयोग नामकर्म के उदय से शुभनाम कार्मण-शरीर प्रयोग बंध होता है। ८५ प्रश्न-हे भगवन् ! अशुभ नाम कार्मण शरीर प्रयोग-बन्ध किस कर्म के उदय से होता है ? ८५ उत्तर-हे गौतम ! काया की वक्रता से, भाव की वक्रता से, भाषा की वक्रता से, विसंवादन योग से और अशुभनाम कार्मण शरीर-प्रयोग नामकर्म . के उदय से अशुभनाम कार्मण शरीर प्रयोग-बंध होता है। ८६ प्रश्न-उच्चागोयकम्मासरीर-पुच्छा ? ८६ उत्तर-गोयमा ! जाइअमएणं, कुलअमएणं, बलअमएणं, रूवअमएणं, तवअमएणं, सुयअमएणं, लाभअमएणं, इस्सरियअमएणं, उच्चागोयकम्मासरीर० जाव पओगबंधे । ८७ प्रश्न–णीयागोयकम्मासरीर-पुच्छ । ८७ उत्तर-गोयमा ! जाइमएणं, कुलमएणं, बलमएणं जाव इस्सरियमएणं, णीयागोयकम्मासरीर० जाव पओगबन्धे । ____ कठिन शब्दार्थ-जाइअमएण-जानि का मद नहीं करने से, इस्सरियअमएण-ऐश्वर्य का मद नहीं करने से। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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