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________________ १५१२ भगवती सूत्र-श. ८ उ. ९ आहारक शरीर प्रयोग बंध . ६१ उत्तर-हे गौतम ! मनुष्यों के आहारक-शरीर प्रयोग-बंध होता है, अमनुष्यों के नहीं होता। इस प्रकार इस अभिलाप द्वारा प्रज्ञापनासूत्र के इक्कीसवें अवगाहना-संस्थान पद में कहे अनुसार कहना चाहिये । यावत् ऋद्धिप्राप्त-प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्त-संख्यात-वर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भज मनुष्य के आहारक शरीर प्रयोग-बंध होता है, परंतु अनुद्धिप्राप्त (ऋद्धि को अप्राप्त) प्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्त संख्यात-वर्षायुष्क-कर्मभूमिज-गर्भज मनुष्य को नहीं होता। ६२ प्रश्न-आहारगसरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कस्म कम्मरस उदएणं ? ६२ उत्तर-गोयमा ! वीरिय-सजोग-सहव्वयाए जाव लदिधं वा पडुच आहारगसरीरप्पओगणामाए कम्मरस उदएणं आहारगसरीरप्प ओगबंधे। .६३ प्रश्न-आहारगसरीरप्पओगबंधे णं भंते ! किं देसबंधे सव्वबन्धे ? ६३ उत्तर-गोयमा ! देसबन्धे वि, सव्ववन्धे वि । ६४ प्रश्न-आहारगसरीरप्पओगबन्धे णं भंते ! कालओ केवञ्चिरं होइ ? ६४ उत्तर-गोयमा ! सव्वबन्धे एक्कं समयं, देमवन्धे जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं । ६५ प्रश्न-आहारगसरीरप्पओगवन्धंतरं णं भंते ! कालओ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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