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भगवती सूत्र - श. ८ उ. ६ आहारक शरीर प्रयोग बंध,
अनन्तगुण हैं, क्योंकि सिद्ध जीव और वनस्पति- कायिक आदि जीव उनसे अनन्त गुण हैं । ये सव वैक्रिय शरीर के अवन्धक हैं ।
आहारक- शरीर प्रयोग - बंध
६० प्रश्न - आहारगसरीरप्पओगवन्धे णं भंते ! कविहे पण्णत्ते ? ६० उत्तर - गोयमा ! एगागारे पण्णत्ते ?
६१ प्रश्न - जड़ एगागारे पण्णत्ते किं मणुस्साहारगसरीरप्पओगबन्धे, अमणुस्ताहारगसरीरप्पओगवन्धे ?
६१ उत्तर - गोयमा ! मणुस्साहारग- सरीर - ओगवंधे, णो अमणुस्पाहारगसरीरप्पओगबंधे । एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे जाव इडिटपत्त-पमत्त-संजय सम्मदिट्ठि-पज्जत्त-संखेज्जवासाज्यकम्मभूमियगव्भवक्कं तिय-मणुस्साहारग-सरीरप्पओगबंधे, णो अणिडिटपत्तपमत्त० जाव आहारगसरीरप्पओगबंधे ।
कठिन शब्दार्थ –एगागारे - एकाकार - एक प्रकार का, इड्डिपत्तपमत्त संजय - ऋद्धि प्राप्त प्रमत्त संयत ।
भावार्थ - - ६० प्रश्न --हे भगवन् ! आहारक शरीर प्रयोग-बंध कितने प्रकार का कहा गया है ?
६० उत्तर - हे गौतम ! एक प्रकार का कहा गया है ।
६१ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि आहारक- शरीर प्रयोग-बंध एक प्रकार का कहा गया है, तो आहारक- शरीर प्रयोग बंध मनुष्यों के होता है, अथवा अमनुयों (मनुष्यों के सिवाय अन्य जीवों) के ?
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