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भगवती मूत्र-श. ८ उ. ६ वैक्रिय शरीर प्रयोग बंध
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उक्कोसेणं अणंतं कालं-अणंताओ-जाव आवलियाए असंखेजड़भागो; एवं देसबंधंतरं पि।
५२ प्रश्न-चाउक्काइयवेउव्वियसरीर पुच्छा।
५२ उत्तर-गोयमा ! सव्वबंधंतरं जहण्णेणं अंतोमहत्तं, उपको. सेणं पलिओवमस्स असंखेजइभाग; एवं देसबंधंतरं पि ।
५३ प्रश्न-तिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउब्वियसरीरप्पओगबंधतरं-पुच्छ।
५३ उत्तर-गोयमा ! सव्वबंधंतरं जहण्णेणं अतोमुहत्तं, उक्को. मेणं पुवकोडिपहुत्तं; एवं देसबंधतरं पि, एवं मणुसस्स वि।
भावार्थ-५० प्रश्न--हे भगवन् ! रत्नप्रभा-पृथ्वी-नरयिक वैक्रियशरीर प्रयोग-बध कितने काल रहता है ?
५० उत्तर-हे गौतम ! सर्व-बन्ध एक समय तक रहता है । देश-बंध जघन्य तीन समय कम दस हजार वर्ष तक तथा उत्कृष्ट एक समय कम एक सागरोपम तक रहता है। इस प्रकार यावत् अधःसप्तम नरक-पृथ्वी तक जानना चाहिये, परंतु जितनी जिसकी जघन्य स्थिति हो, उसमें तीन समय कम जघन्य देश-बंध जानना चाहिये और जिसकी जितनी उत्कृष्ट स्थिति हो, उसमें एक समय कम उत्कृष्ट देश-बंध जानना चाहिये । पंचेन्द्रिय तियंच और मनुष्य का कथन वायुकायिक के समान जानना चाहिये। असुरकुमार, नागकुमार यावत् अनुत्तरोपपातिक देवों का कथन नरयिक के समान जानना चाहिये, परन्तु जिनकी जितनी स्थिति हो, उतनी कहनी चाहिये, यावत् अनुत्तरोपपातिक देवों का सर्वहंध एक समय तक रहता है और देश-बंध जघन्य तीन समय कम इकत्तीस सागरोपम और उत्कृष्ट एक समय कम तेतीस सागरोपम तक का होता है।
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