________________
१५०२
भगवती सूत्र-श. ८ उ. ९ वैक्रिय शरीर प्रयोग बंध
एक्कं समय, उको सेणं अंतोमुहुत्तं ।
भावार्थ-४५ प्रश्न-हे भगवन् ! रत्नप्रभावी नरयिक-पंचेन्द्रिय-क्रियशरीर प्रयोगबंध किप्त कर्म के उदय से होता है ?
४५ उत्तर-हे गौतम ! सवीर्यता, सयोगता और सद्व्यता यावत् आयुष्य के कारण एवं रत्नप्रभा पृथ्वी नरयिकपंचेन्द्रिय-बक्रियशरीर नाम कर्म के उदय से, रत्नप्रभा पृथ्वी नरयिक-पंचेन्द्रिय वैक्रियशरीर प्रयोगबंध होता है। इसी प्रकार यावत् अधःसप्तम नरक पृथ्वी तक कहना चाहिये ।।
४६ प्रश्न-हे भगवन् ! तिर्यचयोनिक पंचें द्रय-वक्रिय-शरीर प्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ?
४६ उत्तर-हे गौतम ! सवीर्यता, सयोगता, सद्रव्यता यावत् आयुष्य और लब्धि के कारण तथा तिर्यंचयोनिक पंचेन्द्रिय वैक्रिय-शरीर प्रयोग नामकर्म के उदय से होता हैं। इसी प्रकार मनुष्य पञ्चेन्द्रिय क्रिय-शरीर प्रयोगबंध के विषय में भी जान लेना चाहिये । असुरकुमार भवनवासी देव यावत स्तनितकुपार भवनवासी देव, वागव्यन्तर, ज्योतिषी, सौधर्मकल्पोत्पन्नक वैमानिक देव यावत् अच्चुत कल्पोत्पत्रक वैमानिक देव, ग्रंवेयक कल्पातीत वैमानिक देव तथा अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देव, इन सबका कथन रत्नप्रभा पृथ्वी के नरयिकों के समान जानना चाहिये।
___ ४७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्रिय-शरीर प्रयोग-बन्ध क्या देशबन्ध है या सर्वबन्ध है ?
____४७ उत्तर-हे गौतम ! देशबन्ध भी है और सर्वबन्ध भी है । इसी प्रकार वायुकायिक एकेन्द्रिय वैक्रिय-शरीर प्रयोगवन्ध तथा रत्नप्रभा पृथ्वी नरयिक वैक्रिय-शरीर प्रयोग-बंध से लगाकर यावत् अनुत्तरोपपातिक देवों तक जानना चाहिये।
४८ प्रश्न-हे भगवन् ! वैक्रिय-शरीर प्रयोगबंध कितने काल तक रहता
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org