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भगवती सूत्र श. ८ उ. ९ शरीर बंध
४० प्रश्न - एएसि णं भंते ! जीवाणं ओरालियसरीरस्स देसवंधगाणं, सव्वबंधगाणं, अबंधगाण य कयरे कपरे - जाव विसेसाहिया वा ? ४० उत्तर - गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा ओरालियसरीरस्स सव्व बंधगा, अबन्धगा विसेसाहिया, देसबन्धगा असंखेज्जगुणा ।
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भावार्थ - ४० प्रश्न - हे भगवन् ! औदारिक शरीर के देश बंधक, सर्वबंधक और अबंधक जीवों में कौन किससे कम, अधिक, तुल्य और विशेषाधिक है ? ४० उत्तर - हे गौतम! सबसे थोडे जीव औदारिक- शरीर के सर्व-बंधक हैं, उनसे अबंधक जीव विशेषाधिक हैं और उनसे देश बंधक जीव असंख्यातगुण है।
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विबेचन - शरीर बन्ध के दो भेद कहे गये हैं, उनमें पूर्व प्रयुक्त प्रयोग-वन्ध वेदना कषायादि समुद्घातरूप जीव के व्यापार से होने वाला जीव प्रदेशों का बन्ध होता है अथवा जीव प्रदेशाश्रित तेजस् कार्मण-शरीर का जो बन्ध होता है, उसे 'पूर्व प्रयोग प्रत्ययिक बंध' कहते हैं । वर्तमान काल में केवलीसमुद्घात रूप जीव व्यापार से होनेवाला तैजस और कार्मण शरीर का जो बन्ध है, उसे 'प्रत्युत्पन्न प्रयोग प्रत्ययिक वंध' कहते हैं ।
शरीर प्रयोग-बंध के औदारिक शरीर प्रयोग-बध आदि पांच भेद कहे गये हैं और औदारिक शरीर के पृथ्वीकायिकादि भेद-प्रभेद कहे गये हैं ।
औदारिक- शरीर प्रयोग-बन्ध सवीर्यतादि आठ कारणों से होता है । यथा१ सवीयंता - वीर्यान्तराय कर्म के क्षमोपशम से उत्पन्न शक्ति को 'सवीर्यता' कहते हैं । २ सयोगता -- मनोयोगादि का व्यापार । ३ सद्द्रव्यता -- उस प्रकार के पुद्गलादि द्रव्य | ४ प्रमाद । ५ कर्म -- एकेन्द्रियादि जाति नाम कर्म । ६ योग- काय योगादि । ७ भव-तिर्यञ्चादिभव । ८ आयुष्य तिर्यञ्चादि का आयुष्य । इन कारणों से उदय प्राप्त औदारिक शरीर प्रयोग नाम कर्म से औदारिक शरीर प्रयोग बंध होता है । इस पर पूर्वाचार्य ने हवेली का दृष्टान्त देकर समझाया है । यथा
१ द्रव्य -- चूना, ईट आदि । २ वीर्य - उपरोक्त पदार्थों को खरीदने में पुरुषार्थं । ३ सयोग - उपरोक्त वस्तुओं का संयोग मिलाना । ४ योग-कारीगर आदि का व्यापार । ५ कर्म - शुभ कर्म का उदय । ६ आयुष्य - हवेली बनानेवाले का आयुष्य पूरा हो, तो हवेली
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