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भगवती मूत्र-श. ८ उ. ९ शरीर बन्ध
भावार्थ-३८ प्रश्न-हे भगवन् ! कोई जीव एकेंद्रिय अवस्था में है, वह एकेंद्रिय को छोड़कर किसी दूसरी जाति में चला जाय और वहां से पुनः एकेंद्रिय में आवे, तो एकेंद्रिय औदारिक शरीर-प्रयोग-बंध का अन्तर कितने काल का होता है ?
३८ उत्तर-हे गौतम ! सर्व-बंध का अन्तर जघन्य तीन समय कम दो क्षुल्लक भव और उत्कृष्ट संख्यात वर्ष अधिक दो हजार सागरोपम है । देशबंध का अन्तर जघन्य एक समय अधिक क्षुल्लकभव तक है और उत्कृष्ट संख्यात वर्ष अधिक दो हजार सागरोपम है।
३६ प्रश्न-हे भगवन् ! कोई जीव, पृथ्वीकायिक अवस्था में हो, वहां से पृथ्वीकाय के सिवाय अन्य काय में उत्पन्न हो और वहां से वह पुनः पृथ्वीकाय में आवे, तो पश्वीकायिक एकेंद्रिय औदारिक-शरीर-प्रयोग बंध का अन्तर कितने काल का है ? .: ३९ उत्तर-हे गौतम ! सर्व-बंध का अन्तर जघन्य तीन समय कम दो क्षुल्लकभव पर्यंत और उत्कृष्ट काल की अपेक्षा अनन्त काल-अनन्त उत्सपिणी और अवसपिणी है । क्षेत्र की अपेक्षा अनन्त लोक-असंख्य पुद्गल परावर्तन है। वह पुद्गल परावर्तन आवलिका के असंख्यातवें भाग प्रमाण है अर्थात् आवलिका के असंख्यातवें भाग में जितने समय हैं, उतने पुद्गल-परावर्तन है । देश-बंध का अंतर. जघन्य समयाधिक क्षुल्लक भव और उत्कृष्ट अनन्त काल यावत् आवलिका के असंख्यातवें भाग के समयों के बराबर असंख्य पुद्गल परावर्तन है। जिस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों का अंतर कहा गया, उसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीवों को छोड़कर मनुष्य तक सभी जीवों के विषय में जानना चाहिये । वनस्पतिकायिक जीवों के सर्व-बंध का अंतर जघन्य काल को अपेक्षा तीन समय कम दो क्षुल्लक भव और उत्कृष्ट असंख्य काल-असंख्य उत्सर्पिणी और अव. सर्पिणी तक है । क्षेत्र की अपेक्षा असंख्य लोक हैं। देश-बंध का अन्तर जघन्य समयाधिक क्षुल्लक भव तक है और उत्कृष्ट पृथ्वीकाय के स्थिति काल तक अर्थात् असंख्य उत्सपिणी अवसर्पिणी यावत् असंख्य लोक तक है।
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