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________________ भगवती सूत्र-श. ८ उ. ९ शरीर बंध १४८३ ज्ञानी अनगार के तेजस और कार्मण शरीर का जो बंध होता है, उसे 'प्रत्युत्पन्न: प्रयोग-प्रत्ययिक बंध' कहते हैं । (प्र०) तेजस और कार्मण शरीर के बंध का क्या कारण है ? (उ०) उस समय में आत्म-प्रदेशों का संघात होता है, जिससे तेजस और कार्मण शरीर का बंध होता है । इस प्रकार यह प्रत्युत्पन्न-प्रयोगप्रत्ययिक बध कहा गया है । यह शरीर बंध का कथन पूर्ण हुआ। २२ प्रश्न-से किं तं सरीरप्पओगबंधे ? २२ उत्तर-सरीरप्पओगबंधे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-ओरालियसरीरप्पओगबंधे, वेठब्वियसरीरप्पओगबंधे, आहारगसरीरप्पओगबंधे, तेयासरीरप्पओगबंधे, कम्मासरीरप्पओगबंधे। २३ प्रश्न-ओरालियसरीरप्पओगवंधे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? ___२३ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-एगिदियओरालियसरीरप्पओगबंधे, वेइंदियओरालियसरीरप्पओगबंधे, जाव पंचिं. दियओरालियसरीरप्पओगवंधे। - २४ प्रश्न-एगिदियओरालियसरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कइ. विहे पण्णत्ते ? __ २४ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-पुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरप्पओगबंधे, एवं एएणं अभिलावेणं भेओ जहा ओगाहणसंठाणे ओरालियसरीरस्स तहा भाणियव्यो, जाव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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