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________________ भगवती सूत्र-श. उ. ८ कर्म-प्रकृति और परीपद - १४६१ प्रश्न यह उपस्थित होता है कि जब मूक्ष्म-सम्पराय वाले जीव के मोहनीय में होने वाले आठ परीषहों का अभाव बतलाया गया है, इससे अापत्ति द्वारा यह अर्थ स्वतः ध्वनित हो जाता है कि अनिवृति-वादर-सम्पराय (नववें गुणस्थानवर्ती) वाले जीव के मोहनीय सम्भव आठों परीपद होते हैं, किन्तु यह किम प्रकार संगत हो मकता है ? क्योंकि दर्शन-सप्तक (चार अनन्तानुबन्धी कषाय, सम्यक्त्व मोहनीय, मिथ्या व मोहनीय और सम्यमिथ्यात्व मोहनीय) का उपशम हो जाने पर बादर कपाय वाले जीव के भी दर्शन-मोहनीय का उदय नहीं होने से दर्शनपरीपह का अभाव है। इसलिये उसके मोहनीय सम्बन्धी सात परीषह ही हो सकते हैं. आठ नहीं। यदि इस विषय में यह कहा जाय कि उसके दर्शन मोहनीय सत्ता में रहा हुआ है, इमलिये दर्शन परीषह का सद्भाव है, इस तरह मोहनीय सम्बन्धी आठ ही परीषह उसके होते हैं, तो यह कहना भी ठीक नहीं, क्योंकि इस तरह तो उपशम-श्रेणी प्राप्त मूक्ष्मसंपराय (दमवें गुणस्थानवर्ती) वाले जीव के भी मोहनीय कर्म सत्ता में है. फिर उसके भी मानाय कम संवन्धी आठों परीषह मानने पड़ेंगे, क्योंकि दोनों जगह न्याय की समानता है? ममाधान-दर्शन-सप्तक का उपशम करने के पश्चात् नपुंसक वेदादि के उपशम के समय में अनिवृत्ति बादर-संपगय होता है । उस समय आवश्यक आदि ग्रंथों के सिवाय . ग्रंथों के मत से दर्शन-त्रिक का बहुत भाग उपशान्त हो जाता है और कुछ भाग अनुपशान्त रहता है, उस कुछ भाग को उपशम करने के साथ ही नपुंसकवेद को उपशांत करने के लिये उपक्रम करता है । इसलिये नपुंसक-वेद के उपशम के समय अनिवृत्ति-बादर-संपराय वाले जीव के केवल दर्शन-मोहनीय की सत्ता ही नहीं है, किन्तु दर्शनमोहनीय का प्रदेशतः उदय भी है । उस उदय की अपेक्षा उस जीव के दर्शन परीषह भी है । इस प्रकार उसके मोहनीय संबंधी आठों परीषह होते हैं । सूक्ष्मसंपराय (दसवें गुणस्थानवर्ती) वाले जीव के यद्यपि मोहनीयकर्म सत्ता में है तथापि वह परीषह का कारण नहीं हैं, क्योंकि उस में मोहनीय का सूक्ष्म उदय भी नहीं है । इमलिय मोहनीयकर्म संबंधी भी परीषह उसके नहीं होता। सूक्ष्म-संपराय वाले जीव के सूक्ष्म-लोम-किट्टिकाओं का उदय है, किन्तु वह परीषह का कारण वहीं होता । क्योंकि लोभनिमित्तक कोई परीषह नहीं बतलाया गया। यदि कोई कथञ्चित् इसका आग्रह करे, तो वह अत्यन्त अल्प होने के कारण उसकी यहां विवक्षा नहीं की गई। आगम में तो समुच्चय रूप से बादर संपराय में मोहनीय के आठों परीषह बतलाये है। नौवें गुणस्थान में आठ परीषह अलग नहीं बतलाये है । बादर संपराय में छठा, सातवा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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