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________________ १४३० भगवती सूत्र - श. ८ उ. ८ प्रत्यनीक क्ष (नवदीक्षित ) प्रत्यनीक, सूर्य-श्रुन, तदुभय-दोनों । भावार्थ - १ प्रश्न - राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा- हे भगवन् ! गुरु महाराज की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक (द्वेषी ) कहे गये हैं ? १ उत्तर - हे गौतम! तीन प्रत्यनीक कहे गये हैं। यथा-१ आचार्य प्रत्यनीक, २ उपाध्याय प्रत्यनीक और ३ स्थविर प्रत्यनीक | २ प्रश्न - हे भगवन् ! गति की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक कहे गये हैं ? २ उत्तर - हे गौतम! तीन प्रत्यनीक कहे गये हैं । यथा - १ इहलोक प्रत्यनीक, २ परलोक प्रत्यनीक और ३ उभयलोक प्रत्यनीक | ३ प्रश्न - हे भगवन् ! समूह की अपेक्षा कितने प्रत्यनौक कहे गये हैं ? ३ उत्तर - हे गौतम! तीन प्रत्यनीक कहे गये हैं। यथा-१ कुल प्रत्यनीक, २ गण प्रत्यनीक और ३ संघ प्रत्यनीक । ४ प्रश्न - हे भगवन् ! अनुकम्पा की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक कहे गये हैं ? ४ उत्तर - हे गौतम! तीन प्रत्यनीक कहे गये हैं। यथा-१ तपस्वी प्रत्यनीक, २ ग्लान प्रत्यनीक और ३ शैक्ष प्रत्यनीक । ५ प्रश्न - हे भगवन् ! श्रुत की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक कहे गये है ? ५ उत्तर - हे गौतम! तीन प्रत्यनीक कहे गये है। यथा-१ सूत्र प्रत्यनीक, २ अर्थ प्रत्यनीक और ३ तदुभय प्रत्यनीक | ६ प्रश्न - हे भगवन् ! भाव की अपेक्षा कितने प्रत्यनीक कहे गये हैं ? ६ उत्तर - हे गौतम ! तीन प्रत्यनीक कहे गये हैं। यथा-१ ज्ञान प्रत्यनीक, २ दर्शन प्रत्यनीक और ३ चारित्र प्रत्यनीक । विवेचन - प्रतिकूल आचरण करने वाले को 'प्रत्यनीक' कहते हैं। अर्थ के व्याख्याता आचार्य और सूत्र के दाता उपाध्याय कहलाते हैं । स्थविर के तीन भेद हैं। यथा-१ वयस्थविर, २ श्रुतस्थविर और ३ प्रव्रज्या स्थविर । साठ वर्ष की उम्र वाले साधु 'वयस्थविर,' स्थानांग और समवायांग सूत्र के ज्ञाता साधु 'श्रुतस्थविर' और बीस वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले माधु 'प्रव्रज्या स्थविर' कहलाते हैं । आचार्य, उपाध्याय और स्थविर मुनियों का जाति आदि से अवर्णवाद बोलना, दोष देखना, अहित करना, उनके वचनों का अपमान करना, उनके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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