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________________ १४२६ भगवती सूत्र-श. ८ उ. ७ अन्य-तीथिक और स्थविर संवाद और राजगृह नगर को प्राप्त करने की इच्छा वाला व्यक्ति असंप्राप्त नहीं कहलाता, किन्तु हे आर्यों ! हमारे मत में 'गच्छन्' गत, व्यतिक्रम्यमाण 'व्यतिक्रान्त' और राजगृह नगर को प्राप्त करने की इच्छा वाला व्यक्ति 'संप्राप्त' कहलाता है । हे आर्यों ! तुम्हारे ही मत में 'गच्छन्' 'अगत,' व्यतिक्रम्यमाण 'अव्यतिक्रान्त' और राजगृह नगर को प्राप्त करने की इच्छा वाला 'असंप्राप्त' कहलाता इस प्रकार उन स्थविर भगवन्तों ने उन अन्यतीथिकों को निरुत्तर किया, निरुतर करके उन्होंने 'गति-प्रपात' नामक अध्ययन प्ररूपित किया। २२ प्रश्न-कइविहे णं भंते ! गइप्पवाए पण्णत्ते ? २२ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे गइप्पवाए पण्णत्ते, तं जहापयोगगई, ततगई, बंधण-छेयणगई, उववायगई, विहायगई; एत्तो आरब्भ पयोगपयं गिरवसेसं भाणियव्वं, जाव सेत्तं विहायगई । * सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति * ॥ अट्ठमसए सत्तमो उद्देसो समत्तो॥ कठिन शब्दार्य-पयोगगई-प्रयोग गति, ततगई-विस्तीर्ण गति, बंधण-छेयणगईबन्धन छेदन गति, उबवायगई-उत्पाद गति, बिहायगई-आकाश में गमन करना, आरम्भप्रारम्भ करके। भावार्थ-२२ प्रश्न-हे भगवन् ! गति-प्रपात कितने प्रकार का कहा गया है ? . २२ उत्तर-हे गौतम ! गति-प्रपात पांच प्रकार का कहा गया है। यथा-१ प्रयोग गति, २ तत गति, ३ बन्धन छेदन गति, ४ उपपात गति और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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