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________________ १४१८ भगबती सूत्र-श. ८ उ. ७ अन्य-तीथिक और स्थविर संवाद - त्रिविध (तीन करण तीन योग से) असंयत, अविरत, अप्रतिहत, अप्रत्याख्यातपाप-कर्म वाले हो।' इत्यादि । सातवें शतक के दूसरे उद्देशक में कहे अनुसार कहा । 'यावत् तुम एकांत बाल हो।' ३-यह सुनकर उन स्थविर भगवन्तों ने उन अन्यतीथिकों से इस प्रकार पूछा-'हे आर्यों । हम किस कारण त्रिविध-त्रिविध असंयत अविरत यावत् एकांत बाल हैं ?' ४-तब उन अन्यतीथिकों ने उन स्थविर भगवन्तों से इस प्रकार कहा'हे आर्यों ! तुम अदत्त पदार्थ ग्रहण करते हो, अदत्त खाते हो और अदत्त की अनुमति देते हो। इस प्रकार अदत का ग्रहण करते हुए, अदत्त खाते हुए और अदत्त की अनुमति देते हुए तुम त्रिविध-त्रिविध असंयत, अविरत यावत् एकांत बाल हो।' ५-तब उन स्थविर भगवन्तों ने उन अन्यतीथिकों से इस प्रकार पूछा-- 'हे आर्यों ! हम किस प्रकार अदत्त का ग्रहण करते हैं, अदत्त का भोजन करते है और अदत्त को अनुमति देते हैं, जिससे कि अदत्त का ग्रहण करते हुए अदत्त खाते हुए और अदत्त की अनुमति देते हुए हम त्रिविध-त्रिविध मसंयत, अविरत बावत् एकान्त बाल हैं ?' ६--उन अन्यतीथिकों ने उन स्थविर भगवन्तों से इस प्रकार कहा'हे आर्यो ! आपके मत में दिया जाता हुआ पदार्थ नहीं दिया गया,' ग्रहण किया जाता हुआ 'ग्रहण नहीं किया गया और पात्र में डाली जाती हुई वस्तु 'नहीं डाली गई'--ऐसा कथन है, इसलिए हे आर्यों ! भापको दिया जाता हुआ पदार्थ जब तक पात्र में नहीं पड़ा, तब तक बीच में से ही कोई उसका अपहरण करले, तो वह उस गृहपति के पदार्थ का अपहरण हुआ'--ऐसा आप कहते हैं, परन्तु 'आपके पदार्थ का अपहरण हुआ'-ऐसा नहीं कहते । इसलिये आप अदत्त का ग्रहण करते हो यावत् अदत्त की अनुमति देते हो और अवत्त का ग्रहण करते हुए यावत् एकान्त बाल हो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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