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भगवती सूत्र-श. ८ उ. ५ आजीविकोपासक और श्रमणोपासक
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'रसवाणिज्य' है।
१० विसवाणिज्जे (विषवाणिज्य)-विष (अफीम, शंखिया आदि जहर) को बेचने का धन्धा करना 'विषवाणिज्य' है । जीवघातक तलवार आदि शस्त्रों का व्यापार करना भी इसी में सम्मिलित है। . ११ जंतपीलणकम्मे (यन्त्रपीडनकर्म)-तिल, ईख आदि पीलने के यन्त्र-कोल्हू, चरखी आदि से तिल ईख आदि पीलने का धन्धा करना 'यन्त्रपीडनव मं' है । उसी प्रकार महारम्भपोषक जितने भी यन्त्र हैं. उन सबका समावेश-यन्त्रपीडनकर्म में होता है । तथा अग्नि सम्बन्धी महारम्भ पोषक यन्त्रों का समावेश-अंगारकर्म में होता है।
१२ निल्लंछणकम्मे (निर्लाछनकर्म)-बैल, घोड़े आदि को खसी (नपुंसक) बनाने का धन्धा करना 'निलांछनकर्म' है।
१३ दवग्गिदावणया (दावाग्निदापनता)-खेत आदि साफ करने के लिये जंगल में किसी से आग लगवा देना अथवा स्वयं लगाना 'दावाग्निदापनता' है। इसमें असंख्य त्रस और अनन्त स्थावर जीवों की हिंसा होती है।
. १४ सर-दह-तलायपरिसोसणया (सरोहृदतडाग परिशोषणता)-स्वत: बना हुआ जलाशय 'सरोवर' कहलाता है। नदी आदि में जो अधिक ऊँडा प्रदेश होता है उसे 'हृद' कहते हैं । जो खोदकर जलाशय बनाया जाता है, उसे 'तड़ाग' (तालाब) कहते हैं । इन (सरोवर, हृद, तालाब आदि) को सूखाना-'सरोहृदतड़ागपरिशोषणता' है।
१५ असईपोसणया (असतीपोषणता)-दुष्चरित स्त्रियों से व्यभिचार करवा कर उनसे भाड़ा ग्रहण करने के लिये उनका पोषण करना अर्थात् आजीविका कमाने के लिये दुश्चरित्रः स्त्रियों का पोषण करना-'असतीपोषणता' है। इसी प्रकार पापबुद्धि पूर्वक कुकर्कुट, मार्जार (बिल्ली) आदि हिंसक जानवरों का पोषण करना भी इसी में सम्मिलित है। - इस प्रकार व्रतों का पालन करने वाले, मत्सरभाव से रहित, कृतज्ञ (उपकारी के उपकार को मानने वाले) अल्पारम्भ से आजीविका करने वाले, प्राणियों के हितचिन्तक शुक्लाभिजात (धार्मिक वृत्ति वाले) श्रमणोपासक, काल के अवसर काल करके किसी देवलोक में उत्पन्न होते हैं। ...भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक-ये चार प्रकार के देवलोक कहे गये हैं।
॥ इति आठवें शतक का पांचवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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