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________________ १३६६ भगवत -श. ८ उ. २ ज्ञान अज्ञान के पर्याय . . वे उनसे अनन्त गुण हैं । उनसे केवलज्ञान के पर्याय अनन्त गुण हैं, क्योंकि उसका विषय समस्त द्रव्य और समस्त पर्याय होने से वे उनसे अनन्त गुण हैं। इसी प्रकार अज्ञानों के भी अल्प-बहुत्व का कारण जान लेना चाहिये। ज्ञान और अज्ञान के पर्यायों के सम्मिलित अल्प बहुत्व में बतलाया गया है कि सब से थोड़े मनःपर्यायज्ञान के पर्याय हैं। उनसे विमंगज्ञान के पर्याय अनन्त गुण हैं। क्योंकि उपरिम (नवम) ग्रेवेयक से लेकर सातवीं नरक तक में और तिर्यक् असंख्यात द्वीप समुद्रों में रहे हुए कितने ही रूपी द्रव्य और उनके कितने ही पर्याय, विभंगज्ञान का विषय है और वे मनःपर्ययज्ञान के विषय की अपेक्षा अनन्त गुण हैं। विभंगज्ञान के पर्यायों से अवधिज्ञान के पर्याय अनन्त गुण हैं । क्योंकि अवधिज्ञान का विषय सम्पूर्ण रूपी द्रव्य और प्रत्येक द्रव्य के असंख्यात पर्याय हैं । वे विभंगज्ञान की अपेक्षा अनन्त गुण हैं । उनसे श्रुतअज्ञान के पर्याय अनन्त गुण है । क्योंकि श्रुतअज्ञान का विषय, श्रुतज्ञान की तरह सामान्यादेश से सभी मूर्त और अमूर्त द्रव्यं तथा सभी पर्याय होने से अवधिज्ञान की अपेक्षा अनन्त गुण हैं। उनसे श्रुतज्ञान के पर्याय विशेषाधिक हैं. क्योंकि श्रुतअज्ञान के अगोचर (अविषयभूत ) कितने. ही पर्यायों को श्रुतज्ञान जानता है । उनसे मतिअज्ञान के पर्याय अनन्त गुण हैं, क्योंकि श्रुतज्ञान तो अभिलाप्य वस्तु विषयक होता है और मतिअज्ञान उनसे अनंत गुण अनभिलाप्य वस्तु विषयक भी होता है। उनसे मतिजान के पर्याय विशेषाधिक हैं, क्योंकि मतिअज्ञान के अगोचर कितने ही पर्यायों को मतिजान जानता है । उनसे केवलज्ञान के पर्याय अनंत गुण हैं, क्योंकि वह सभी काल में रहे हुए समस्त द्रव्यों और उनकी समस्त पर्यायों को जानता है। ॥ इति आठवें शतक का दूसरा उद्देशक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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