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________________ १३४४ भगवती सूत्र - श. ८ उ. २ योग उपयोगादि में ज्ञान अज्ञान लब्धि वाले जीवों में चार ज्ञान, या तीन अज्ञान भजना से पाये जाने हैं। जिव्हेन्द्रिय लब्धि रहित जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं । जो ज्ञानी हैं, वे केवलज्ञानी हैं । उनमें एक केवलज्ञान पाया जाता है। जो अज्ञानी हैं, वे एकेन्द्रिय हैं । उनमें दो अज्ञान नियम से पाये जाते हैं । विभंगज्ञान का उनमें अभाव है । एकेन्द्रिय जीवों में सास्वादन सम्यग्दर्शन का अभाव होने से ज्ञान का अभाव है । जिस प्रकार इन्द्रिय-लब्धि वाले और अलब्धि वाले जीवों का कथन किया गया है, उसी प्रकार स्पर्शनेन्द्रिय लब्धि और अलब्धिवाले जीवों का कथन करना चाहिये अर्थात् स्पर्शनेन्द्रिय लब्धि वालों में चार ज्ञान (केवलज्ञान के सिवाय ) और तीन अंज्ञान भजना से पाये जाते हैं । स्पर्शनेन्द्रिय लब्धि रहित केवली ही होते हैं, उनमें एक कंवलज्ञान ही होता है । योग उपयोगादि में ज्ञान अज्ञान ९० प्रश्न - सागारोवउत्ता णं भंते ! जीवा किं णाणी अण्णाणी ? ९० उत्तर - पंच णाणाई तिष्णि अण्णाणाई भयणाए । ९१ प्रश्न - आभिणिवोहियणाण-सागारोवउत्ता णं भंते !० ? ९१ उत्तर - चत्तारि णाणाई भयणाए । एवं सुयणाण-सागारोवि । ओहिणा- सागारोवउत्ता जहा ओहिणाणलद्वीया | मणपज्जवणाण-सागारोवउत्ता जहा मणपज्जवणाणलद्वीया । केवलणाणसागरोत्ता जहा केवलणाणलदीया | म अण्णाण-सागारोवउत्ताणं तिष्णि अण्णाणाई भयणाए । एवं सुयअण्णाण -सागारोवउत्ता वि विभंगणाण-सागारोवउत्ताणं तिष्णि अण्णाणाइं णियमा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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