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भगवती मूत्र-ग. ७ उ. १ दुःख में व्याप्त
पर, कम रहित जीव की गति होती है।
. १४ प्रश्न-हे भगवन् ! निरिन्धन (कर्मरूपो इंधन से रहित) होने से कर्म रहित जीव की गति किस प्रकार होती है ?
१४ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार इंधन से छूटे हुए बूंए की गति, किसी प्रकार की रुकावट के बिना-स्वाभाविक रूप से ऊपर की ओर होती है, इसी प्रकार हे गौतम ! कर्मरूप इंधन से रहित होने से, कर्म रहित जीव की गति होती है।
१५ प्रश्न-हे भगवन् ! पूर्व-प्रयोग से कर्म रहित जीव की गति किस प्रकार होती है ?
१५ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार धनुष से छूटे हुए बाण की गति, किसी भी प्रकार की रुकावट के बिना लक्ष्याभिमुख होती है, इसी प्रकार हे गौतम ! पूर्व प्रयोग से कर्म रहित जीव की गति होती है। हे गौतम ! इस प्रकार निःसंगता से, नीरागता से, यावत् पूर्व प्रयोग से कर्म रहित जीव की गति होती है।
विवेचन--पूर्व प्रकरण में अकर्मन्व का कथन किया गया है । अतः इस प्रकरण में भी अकर्मत्व विषयक कथन किया जाता है।
कर्म रहित जीव की ऊर्ध्वगति होने में निःसंगता, नीरागता (मोह रहितता) गतिपरिणाम, बन्धनविच्छेद, निरिन्धनता और पूर्वप्रयोग, ये छह कारण हैं । इन छह कारणों से कर्म रहित जीव की गति किस प्रकार होती है ? इसके लिए मूल में तुम्बा, मूंगादि की फली, एरण्डफल, धूम, बाण आदि के उदाहरण देकर बतलाया गया है, जिससे विषय स्पष्ट और सुगम हो गया है ।
दुःख से व्याप्त
१६ प्रश्न-दुक्खी णं भंते ! दुक्खेणं फुडे, अदुक्खी दुक्खेणं फुडे ?
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