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मनयनः मूत्र---श. ८ उ. २ जान दर्शनादि लब्धि
यिक आदि चार चारित्रलब्धि वाले जीव, छद्मस्थ ही होते हैं । इसलिये उन में चार ज्ञान भजना से पाये जाते हैं । यथाख्यात चारित्र ग्यारहवें गुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान तक के जीवों में होता है। इनमें से ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थान वर्ती जीव छगस्थ है। तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानवी जीव केवली है। इसलिय यथाख्यात चारित्रलब्धि वाले जीवों में पांच ज्ञान भजना से पाये जाते हैं।
___ चारित्राचारित्र लब्धि वाले जीव ज्ञानी ही होते हैं। उनमें तीन ज्ञान भजना मे पाये जाते हैं। चारित्राचारित्र लब्धि रहित जीव जो ज्ञानी हैं, उनमें पांच ज्ञान भजना से और अज्ञानी में तीन अजान भजना से पाये जाते हैं।
दानान्तराय कर्म के क्षय और क्षयोपशम स दान लब्धि प्राप्त होती है । इस लब्धि वाले जीव जो ज्ञानी हैं, उन में पांच ज्ञान भजना से पाये जाते हैं। क्योंकि केवल ज्ञानियों में भी दान-लब्धि पाई जाती है । दानलब्धि वाले ना अज्ञानी जीव हैं. उन में तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं। दान-लब्धि रहित जीव सिद्ध होते हैं । यद्यपि उनके दानान्त राय कर्म का क्षय हो चका है, तथापि वहाँ दानव्य पदार्थ का अभाव होने से तथा दान ग्रहण करने वाले जीवों के न होने से, और कृतकृत्य हो जाने के कारण किसी प्रकार का प्रयोजन न होने से उन में दान-लब्धि नहीं मानी गई। उन में नियमा एक केवलजान पाया जाता है।
जिस प्रकार दान-लब्धि और अलब्धि वाले जीवों का कथन किया गया है, उसी प्रकार लाभ-लब्धि, भोग-लब्धि, उपभोग-लब्धि और वय-लब्धि तथा इनकी अलब्धि वाले जीवों का कथन करना चाहिये । इन सबकी अलब्धिदाले जीव, पूर्वोवत न्याय से 'सिद्ध' ही हैं । यद्यपि उनमें दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य, इन पांचों तरह के अन्तराय कर्म का सर्वथा क्षय हो चुका है, तथापि वे भगवान् सर्वथा कृतकृत्य हो चुके हैं । इसलिय उनको दान लाभादि किमी प्रकार का प्रयोजन नहीं है अर्थात् कृतकृत्य हो जाने से तथा प्रयाजन के अभाव से दानादि में उनकी प्रवृत्ति नहीं होती।
वीर्यलब्धि के तीन भेद हैं । उनका स्वरूप बतला दिया गया है । बालवीयलब्धि वाले जीव असंयत (अविरत) कहलाते हैं। उनमें से जानी जीवों में पहले के तीन ज्ञान भजना से और अज्ञानी जीवों में तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं । बालवीर्य लम्धि रहित जीव सर्वविरत, देशविरत और सिद्ध होते हैं । इन में पांच ज्ञान भजना से पाये जाते हैं । पण्डितवीर्य लब्धि वाले जीव जानी ही होते हैं। उन में पांच ज्ञान भजना से पाये जाते हैं। पण्डितबीयं लब्धि रहित जीव असंयत, देशसंयत और सिद्ध होते हैं । इनमें से असंयत जीवों
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