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________________ १३३४ भगवती सूत्र - श. ८ उ. २ ज्ञान दर्शनादि लब्धि एक केवलज्ञान वाले हैं । श्रोत्रेन्द्रिय-लब्धि वाले जीवों का कथन इन्द्रिय-लब्धि वाले जीवों (सु. ८६ ) के समान जानना चाहिये । ८८ प्रश्न - हे भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय-लब्धि रहित जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी ? ८८ उत्तर - हे गौतम! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं, उनमें कितने ही दो ज्ञान वाले हैं और कितने ही एक ज्ञान वाले हैं। जो दो ज्ञान वाले हैं, वे आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान वाले हैं। जो एक ज्ञान वालें हैं वे एक केवलज्ञान वाले हैं। जो अज्ञानी हैं, वे नियमा दो अज्ञान वाले हैं। यथामतिअज्ञान और श्रुतअज्ञान । चक्षुरिन्द्रिय और घ्राणेन्द्रिय लब्धि वाले जीवों का कथन श्रोत्रेन्द्रिय-लब्धि वाले जीवों (सू. ८७ ) के समान करना चाहिये। उनमें चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं। चक्षुरिन्द्रिय और घ्राणेन्द्रिय लब्धि रहित जीवों का कथन श्रोत्रेन्द्रिय-लब्धि रहित जीवों की तरह कहना चाहिये । अर्थात् उनमें ज्ञान दो तथा एक और अज्ञान दो पाये जाते हैं । जिव्हेन्द्रिय लब्धि वाले जीवों में चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं । ८९ प्रश्न - हे भगवन् ! जिव्हेन्द्रिय लब्धि रहित जीव, ज्ञानी होते हैं, या अज्ञानी ? ८९ उत्तर - हे गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं, वे नियम से एक केवलज्ञानी हैं। जो अज्ञानी हैं, वे नियम से दो अज्ञान ( मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान) वाले हैं । स्पर्शनेन्द्रिय लब्धि वाले जीवों का कथन, इन्द्रिय लब्धिवाले जीवों (सू. ८६ ) के समान कहना चाहिये। उनमें चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं । स्पर्शनेन्द्रियलब्धि रहित जीवों का कथन इन्द्रिय-लब्धि रहित जीवों (सू. ८७) के समान कहना चाहिये। उनमें एक केवलज्ञान होता है । विवेचन - लब्धि - ज्ञानादि के प्रतिबन्धक ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के क्षय, क्षयोपशम या उपशम से आत्मा में ज्ञानादि गुणों का प्रकट होना- 'लब्धि' है। इसके दस भेद हैं। यथा(१) ज्ञानलब्धि - ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम आदि से आत्मा में माभिनि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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