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________________ भगवती सूत्र - श. ८ उ. २ ज्ञान दर्शनादि लब्धि : • ८५ उत्तर - गोयमा ! णाणी, णो अण्णाणी । णियमा एगणाणी केवलणाणी । एवं जाव वीरियस्स लदी अलद्धी य भाणियव्वा । बालवी रियलद्वियाणं तिष्णि णाणाई, तिष्णि अण्णाणाई भयगाए । तस्स अलद्धियाणं पंत्र णाणाई भयणाए । पंडियवीरियलद्वीयाणं पंच णाणाई भयणाए । तस्स अलद्धीयाणं मणपज्जवणाणजाई णाणाई, अण्णाणाणि तिष्णि य भयणाए । बालपंडियवी रियलद्भियाणं तिणिण णाणाई भयणाए । तस्स अलद्वीया पंच णाणाई, तिष्णि अण्णाणाई भयणाए । कठिन शब्दार्थ-चरित्ताचरित - कुछ चारित्र और कुछ अचारित्र (देश- चारित्र ) । भावार्थ - ८२ प्रश्न - हे भगवन् ! चारित्रलब्धि वाले जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी ? ८२ उत्तर - हे गौतम! वे ज्ञानी होते हैं, अज्ञानी नहीं। उनमें पांच ज्ञान भजना से पाये जाते हैं | चारित्रलब्धि रहित जीवों में मन:पर्यय ज्ञान के सिवाय चार ज्ञान और तीन अंज्ञान भजना से पाये जाते हैं । १३३१ : ८३ प्रश्न - हे भगवन् ! सामायिक चारित्रलब्धि वाले जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञांनी ? Jain Education International ८३ उत्तर- - हे गौतम वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं । उनमें केवलज्ञान के सिवाय चार ज्ञान की भजना है। सामायिक चारित्रलब्धि रहित जीवों में पांच ज्ञान और तीन अज्ञान को भजना है। इस प्रकार सामायिक चारित्र लब्धि वाले जीवों के समान यावत् यथाख्यातचारित्र वाले जीवों का कथन करना चाहिये, किन्तु यथाख्यात चारित्र वाले जीवों में पांच ज्ञान भजना से पाये जाते हैं । सामायिक चारित्र-लब्धि रहित जीवों की तरह यावत् यथाख्यात चारित्र लब्धि रहित जीवों का कथन करना चाहिये । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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