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भगवती सूत्र-श. ८ उ. २ जान अजान की भजना के वीस द्वार
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अर्थात् नरक में गति अर्थात् गमन जिन जीवों का हो, वे 'निरयगतिक' कहलाते हैं । तात्पर्य यह है कि पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च और मनुष्य, वे सम्यग्दृष्टि हों अथवा मिथ्यादृष्टि, ज्ञानी हों अथवा अज्ञानी, जो नरकगति में उत्पन्न होने वाले हैं, अर्थात् यहाँ से मर कर नरक में जाने के लिये विग्रह गति में (अन्तराल गति में) चल रहे हैं। वे जीव यहाँ 'निरयगति' शब्द से लिये गये हैं। इसी अर्थ को बतलाने के लिये निरय' शब्द के माथ-- 'गनि' शब्द का प्रयोग किया गया है । निरयगतिक जीव यदि ज्ञानी हों, तो नियम मे तीन मानवाले होते हैं। क्योंकि उन्हें अवधिज्ञान भवप्रत्यय होने के कारण विग्रह गति में भी होता है । यदि वे अज्ञानी हों, तो तीन अज्ञान भजना से होते हैं। क्योंकि जब अमंजा पञ्चेन्द्रिय तियंच, नरक में जाता है, तो अपर्याप्त अवस्था तक उसे विभंगज्ञान नहीं होता । उस मम । उसके दो अज्ञान ही होते हैं । मिथ्यादृष्टि संजो को अन्तराल अवस्था से ही तीन अज्ञान होते हैं। क्योंकि उसको भवप्रत्यय विभंगज्ञान होता है । इसलिय तीन अज्ञान भजना से कहे गये हैं।
तिर्यचगति में जाते हुए बीच में विग्रह-गति में रहा हुआ जीव तिर्यञ्च-गतिक' कहलाता है। उसे नियम से दो ज्ञान या दो अनान होते हैं। क्योकि सम्यग्दृष्टि जीव अवधिज्ञान से गिरने के बाद ही मनि-ध्रुत ज्ञान महित तिर्यचगति में जाता है । इसलिये उसे निय मा दो ज्ञान होते हैं । मिथ्यादष्टि जीव, विभगनान में गिरने के बाद मनि अनान, श्रुत अज्ञान सहित तिर्यंच गति में जाता है । इसलिये नियम में वह दो अज्ञान वाला होता है।
___ मनुष्यगति में जाते हुए विग्रहांत में चरता हुआ जीव--'मनुप्यगतिक' कहलाता है । उस में भजना से तीन ज्ञान होते हैं अथवा दो अनान नियम से होते हैं । मनुष्यगति में जाते हुए जीव जो ज्ञानी होते हैं, उनमें से कितने ही तीर्थकर की तरह अवधिजान सहित मनुष्य-गति में जाते हैं, उन्हें तीन ज्ञान होते हैं । कितने ही जीव अवधिनान हित मनुष्य गति में जाते हैं, उन्हें दो ज्ञान होते हैं । इसलिये यहां तीन ज्ञान भजना से कहे गये हैं । जो मिथ्यादृष्टि हैं, वे विभंगज्ञान रहित ही मनुष्य गति में उत्पन्न होते हैं, इसलिये उन्हें दो अज्ञान नियम से होते हैं।
. देवगति में जाते हुए विग्रहगति में वर्तता हुआ जीव-'देव-गतिक' कहलाता है । उनका कथन नरकगतिक जीवों की तरह जानना चाहिये। क्योंकि देवगति में जाने वालों में जो ज्ञानी हैं, उन्हें देवायु के प्रथम समय में ही भवप्रत्यय अवधिज्ञान उत्पन्न हो जाता है। इसलिये नैरयिकों की तरह उनके तीन ज्ञान नियम से होते हैं । जो. अज्ञानी हैं और
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