SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३०८ भगवती सूत्र---श. ८ उ. २ ज्ञान अज्ञान की भजना के बीस द्वार ___३१ उत्तर-गोयमा ! णाणी वि अण्णाणी वि; तिण्णि णाणाई णियमा, तिण्णि अण्णाणाइं भयणाए । ३२ प्रश्न-तिरियगइया णं भंते ! जीवा किं णाणी अण्णाणी ? ३२ उत्तर-गोयमा ! दो णाणा, दो अण्णाणा णियमा । ३३ प्रश्न-मणुस्सगइया णं भंते ! जीवा किं णाणी, अण्णाणी ? ३३ उत्तर-गोयमा ! तिण्णि णाणाई भयणाए, दो अण्णाणाई णियमा । देवगइया जहा णिरयगइया । ३४ प्रश्न-सिद्धगइया णं भंते ! ३४ उत्तर-जहा सिद्धा। कठिन शब्दार्थ--णिरयगइया--नरक गति में जाते हुए। भावार्थ-३१ प्रश्न-हे भगवन् ! निरयगतिक (नरक में जाते हए) जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी हैं ? ___३१ उत्तर-हे गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी है । जा जानी हैं, वे नियमा तीन ज्ञान वाले हैं और जो अताती हैं, वे भजना से जीन अज्ञान वाले हैं। ३२ प्रश्न-हे भगवन् ! तिर्यञ्चगतिक (तियंञ्चगति में जाते हुए) जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी हैं ? ३२ उत्तर-हे गौतम ! उनको नियमा दो ज्ञान या दो अज्ञान होते हैं। ३३ प्रश्न-हे भगवन् ! मनुष्यगतिक जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी हैं ? ३३ उत्तर-हे गौतम! उनको भजना से तीन ज्ञान होते हैं और नियमा दो अज्ञान होते है । देवगतिक जीवों का वर्णन, निरयगतिक जीवों के समान जानना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy