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भगवती सूत्र - श. ८ उ. २ ज्ञान के मंद
कठिन शब्दार्थ - संगोवंगा - सांगोपांग-अंग उपांग सहित, अत्थोग्गहे - अर्थ अवग्रह वंजणोग्गहे - -- व्यञ्जन अवग्रह, एगट्ठियवज्जं - एकाधिक छोड़कर, नोइंदिय--मन, वाससंठिए -- वर्ष के आकार का, वासहरसंठिए — वर्षधर पर्वत के आकार, थूभसंठिए - - स्तूप के आकार का, हयसंठिए - घोड़े के आकार का, गय--- हाथी, पसु -- पशु, पसय-- पशुविशेष (दो खुरवाला पशु), विहग -- पक्षी ।
भावार्थ - १९ प्रश्न - हे भगवन् ! अज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? १९ उत्तर - हे गौतम ! अज्ञान तीन प्रकार का कहा गया है । यथा-मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान और विभंगज्ञान ।
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२० प्रश्न - हे भगवन् ! मतिअज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? २० उत्तर - हे गौतम! मतिअज्ञान चार प्रकार का कहा गया है । यथा"अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा ।
२१ प्रश्न - हे भगवन् ! अवग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ?
२१ उत्तर - हे गौतम ! अवग्रह दो प्रकार का कहा गया है । यथा-अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह। जिस प्रकार नन्दोसूत्र में आभिनिबोधिक ज्ञान के विषय में कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी जान लेना चाहिये । किन्तु वहां अभिनिबधिक ज्ञान के प्रकरण में अवग्रह आदि के एकाधिक (समानार्थक ) शब्द कहे है । उनको छोड़कर यावत् नोइन्द्रिय धारणा तक कहना चाहिये । इस प्रकार धारणा का और मतिअज्ञान का यह कथन किया गया है ।
• २२ प्रश्न - हे भगवन् ! श्रुतअज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? २२ उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार नन्दी सूत्र में कहा है- 'जो अज्ञानी 'मिथ्यादृष्टियों द्वारा प्ररूपित है,' इत्यादि यावत् सांगोपांग चार वेद तक श्रुत: अज्ञान है । इस प्रकार यह श्रुतअज्ञान का वर्णन किया गया है ।
: २३ प्रश्न - हे भगवन् ! विभंगज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? २३ उत्तर - हे गौतम ! विभंगज्ञान अनेक प्रकार का कहा गया है ।
- यथा - ग्रामसंस्थित अर्थात् ग्राम के आकार, नगर संस्थित अर्थात् नगर के आकार यावत् सन्निवेश संस्थित, द्वीप संस्थित, समुद्र संस्थित, वर्ष संस्थित ( भरतादि क्षेत्र
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