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भगवती सूत्र--श. ८ उ. २ ज्ञान के भेद
ज्ञान के भेद
१७ प्रश्न-कइविहे णं भंते ! णाणे पण्णत्ते ?
१७ उत्तर-गोयमा ! पंचविहे णाणे पण्णत्ते, तं जहा-आभिणिबोहियणाणे, सुयणाणे, ओहिणाणे, मणपज्जवणाणे, केवलणाणे। ___१८ प्रश्न-से किं तं आभिणिबोहियणाणे ?
१८ उत्तर-आभिणिवोहियणाणे चउविहे पण्णत्ते, तं जहाउग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा; एवं जहा 'रायप्पसेणइजे' णाणाणं भेओ तहेव इह भाणियव्वो; जाव सेतं केवलणाणे।
कठिन शब्दार्थ--उग्गहो-अवग्रह (सम्बन्ध मात्र होने वाला एक समय मात्र के लिए संबंध से होने वाला, आभास) ईहा--विचार करना, अवाओ--विचार कर निश्चित करना, धारणा--स्मृति में रखना।
भावार्थ-१७ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ?
१७ उत्तर-हे गौतम ! ज्ञान पांच प्रकार का कहा गया है । यथाआभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान ।
.. १८ प्रश्न-हे भगवन् ! आमिनिबोधिकज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ?
१८ उत्तर-हे गौतम ! आभिनिबोधिक ज्ञान चार प्रकार का कहा गया है । यथा-अवग्रह, ईहा, अवाय (अपाय) और धारणा । जिस प्रकार राजप्रश्नीय सूत्र में ज्ञान के भेद कहे गये हैं, उसी प्रकार यावत् केवलज्ञान पर्यन्त कहना चाहिये। .
. .. १९ प्रश्न-अण्णाणे णं भंते ! काविहे पण्णते ?
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